साहित्य

बंदूक़ से कारतूस, वाणी के बोल

डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’

हमारी सार्थक सफलता अक्सर बड़ी
हार और निराशा के बाद मिल पाती है,
इसलिए निराशा त्याग आशावान बने
रहना, सहज सफलता मिल पाती है।

छोटी छोटी बातों पर बहस बढ़ाना,
यह हमें नहीं कहीं शोभा देता है,
छोटे मोटे घावों से चोटिल हो रोते
रहना हमें कभी नही अच्छा लगता है।

अपना भविष्य औरों के हाथों में
दे देना, हमें कभी मंज़ूर नहीं है,
छोटा जीवन जग में जीना, औरों को
मंज़ूर होगा, हमको ये मंज़ूर नहीं है।

प्रेम-प्यार, रिश्ते-नाते और मित्रता
सभी जगह हाज़िर हो ही जाते हैं,
चाहे आमन्त्रण मिले या नहीं मिले
फिर भी ये सभी मिल ही जाते हैं।

पर जहाँ मान सम्मान मिलता है
वहीं अधिक स्थिर भी रह पाते हैं,
इनका भरपूर आनंद उठाना है,
मान देते भी और मान पाते भी हैं।

हँसी ख़ुशी आज ही मिलती है, कल
की कौन जाने मिलती, नही मिलती,
बीती बातें भूलने पर या भविष्य की
चिंता करने से भी ये कहाँ मिलती।

मधुर वचन बोलना बहुत लोगों
को मंहगा शौक हो सकता है,
क्योंकि हमेशा मधुर बोलना हर
किसी के बस की बात नहीं है।

परंतु फिर भी जब माहौल ठीक न
हो तो ऐसे समय बुरे वचन ना बोलें,
माहौल बदलने के बहुत मौके मिलेंगें,
पर वचन बदलने के मौक़े नहीं मिलेंगे।

दुनिया बुरी है, सब जगह धोखा है,
पर खुद तो अच्छे बने, किसने रोका है,
आदित्य बंदूक़ से कारतूस, वाणी से
निकले बोल कभी वापस नही आना है।

डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’
लखनऊ

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