‘वन्दे मातरम्’ स्वाधीनता आन्दोलन का प्रेरक

अहरौला। शुक्रवार को राजकीय महिला महाविद्यालय समदी में वन्दे मातरम् गीत के 150 वर्ष पूर्ण होने उपलक्ष्य में इसके सामूहिक गायन के साथ संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें छात्राओं को स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रीय गीत की भूमिका के बारे में बताया गया। अपने सम्बोधन में प्राचार्य प्रोफेसर महेन्द्र प्रकाश ने बताया कि वन्दे मातरम की रचना का उद्देश्य पूरे देश में स्वाधीनता के विचार प्रेषित करने के साथ-साथ लोगों को एक डोर में जोड़ने का था। यह गीत स्वन्त्रता का उद्घोष था जिससे जनजातीय, किसान और गांधीवादी आंदोलन को बल मिला। 07 नवम्बर 1875 को बंकिमचंद्र चटर्जी ने वन्दे मातरम् की रचना की थी। स्वतन्त्र भारत में 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा द्वारा इसको राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया। इतिहास के असिस्टेंट प्रोफेसर इतिहास अनिल तिवारी ने बताया कि राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय भावना इस गीत में प्रबल है। ‘वन्दे मातरम्’ भारत की पहचान का प्रतीक है, जो देश प्रेम की भावना को जगाता है। इस गीत को रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा संगीतबद्ध किया गया और 1896 के कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में इसको पहली बार गाया भी गया था। आगे चलकर इसके दो छंद को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया गया, जिसका वैचारिक विरोध भी हुआ। संगोष्ठी का संचालन हिन्दी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राकेश कुमार यादव ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर श्रीमती कंचन यादव, डॉ. प्राणनाथ सिंह यादव, डॉ. जमालुद्दीन अहमद, डॉ. प्रज्ञानंद प्रजापति, वरिष्ठ कार्यालय सहायक अदिति सिंह एवं महाविद्यालय की छात्रायें उपस्थिति रहीं।