
जीवन गुजर रहा है जीवन को ढूंढने में,
आशा प्रकाश लेकर आभा को ढूंढने में।
प्रदर्शन को बना लिया चाहत हर किसी ने,
होती है बहुत दिक्कत सादगी ढूंढने में।
हो गया जो भी प्राप्त नहीं उसकी है महत्ता,
हर पल लगा रहा बस कमियों को ढूंढने में।
हिरदय में बसे ईश्वर उसे खोज नहीं पाया,
है भटक रहा है बाहर मंदिर को ढूंढने में।
भीतर स्वयं के झांक देखे तो कोई समझे,
बहुतों को है रुलाया जो हंसी को ढूंढने में।
भाग्य में कमी थी या अनुभव में कसर था,
गलती किए निरंतर जो सही को ढूंढने में।
ना खुश रहना सीखा ना ही खुश रहना जाना,
खुश करने में लगा रहा जो खुशी को ढूंढने में।




