साहित्य

दीपावली गीत

प्रज्ञा तिवारी सुल्तानपुर

आ गई है दिवाली मनाए चलो

नफरतों को दिलों से मिटाएं चलो

प्रेम का दीप जलकर खुशी लाएगा

एक ऐसी दिवाली मनाए चलो

झूठ छल से दिशाएं बदलने लगी

दूरियां अब दिलों में है बढ़ने लगी

प्यार विश्वास दिल में बनाए चलो

एक ऐसी दिवाली मनाए चलो

मिट गए फिर अंधेरे दिए जब जले।

जब अवध में प्रभु राम के पग पड़े।

सत्य की ज्योति पथ पर जलाए चलो।

एक ऐसी दिवाली मनाए चलो।।

लूट हिंसा से मानव का मन मर गया।

भय तमस के प्रदूषण से जग भर गया।

ऐसी हिंसा का नर्तन मिटाए चलो।

एक ऐसी दिवाली मनाए चलो।।

जिनके घर में अंधेरे है ठहरे हुए।

जिनके मन हैं उदासी से गहरे हुए।

ऐसी कुटिया को रौशन बनाए चलो।

एक ऐसी दिवाली मनाए चलो।।

प्रज्ञा तिवारी✍️सुलतानपुर

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