
आचरण बिना कहां है जीवन,
भाई बात समझ ले तू श्रीमान।
आचरण से जग में मिलें जीत,
जीत से बन जाते हैं सब मीत।।
तू गुण,अवगुण में कर लें भेद,
बन्दे कहें सब पुराण और वेद।
सद्गुण ही आचरण की पहचान,
आचरण से होती सबकी शान।।
मृदुल वाणी और सत्य विचार,
जटिल राहों में बन जाते दीवार।
बन्दे सजता जीवन आचरण से,
तू इसको सीख लें स्कूल,मदरसे।।
कर्म और वाणी से बनें आचरण,
संत करें तीनों लोक में विचरण।
आचरण हो जिसमें होती प्रशंसा,
उसकी पहचान भी करते अरसा।।
स्वरचित और मौलिक कविता
सर्वाधिकार सुरक्षित
सुनील कुमार “खुराना”
नकुड़ सहारनपुर
उत्तर प्रदेश भारत




