साहित्य

आदमी और जूता

वीणा गुप्त

आदमी और जूते में ,
जन्म जन्मान्तर का नाता है।
जैसे मंदिर के बिना भगवान ,
लाला के बिना दुकान,
मीठे के बिना पकवान,
शैतानी के बिना शैतान,
वैसे ही जूते के बिना इंसान,
नजर आता है।

जूते का इतिहास बहुत पुराना है।
सदियों से आदमी इसका दीवाना है।
इब्नबतूता जूते के चक्कर में,
जापान घूम आया था।
बाबर  जूता पहन कर ही,
समरकंद से हिंदुस्तान आया था।
अंग्रेजों ने जहाँगीर के जूते सीधे कर,
ईस्ट इंडिया कंपनी का,
जाल बिछाया था।
कोेहनूर का दाम ,
महाराजा रणजीत सिंह ने
एक जूता बताया था।

जूता मानव जाति की ,
उन्नति का आधार है।
बिना इसके अधूरा श्रृंगार है।
जूते ने बड़े-बड़े पूंजीपति बनाएँ हैं।
जूते दिखाकर, ठीक कर करवा कर,
अनेक जीवन की बाजी जीत पाए हैं।

जूता शासन भी चलाता है।
भरत जी को इसने ही
दुविधा से निकाला था।
श्रीराम की अनुपस्थिति में,
उनकी चरण पादुकाओं ने,
अयोध्या का राज्य,
बखूबी सँभाला था।

चाँदी का जूता बड़े काम आता है।
असंभव को संभव कर दिखाता है।
बड़े से बड़ा भूत ,
इसकी मार से घबराता है।
लंगोटी छोड़ ,सिर पर धर पाँव भाग जाता है।

अभिनय के क्षेत्र में भी इसका कमाल है।
ट्रेजडी और कॉमेडी दोनों में ही,
यह बेमिसाल है।
फिल्मी नायक रो नहीं पाता,
मत धबराइए,
उसे कील वाला जूता पहनाइए।
अभिनय में जान पड़ जाएगी।
रोते-रोते दर्शकों की तबीयत बिगड़ जाएगी।

जूता ही फिल्म में सस्पेंस बनाता,
खुलवाता है।
हीरो हीरोइन की प्रेमकथा को,
क्लाईमेक्स पर पहुँचाता है।
हीरोइन सैंड़िल उठाती है,
हीरो सर झुकाता है
प्रेम परवान चढ़ता है
विलेन जूते पर जूता खाता है।
प्रोड्यूसर खुशी से जूते चटखाता है।

एक जमाना था, लोग जूते को
अंडर-एस्टीमेट करते थे।
मूर्ख थे, बड़ी मिस्टेक करते थे।

अब महिमा इसकी बखूबी जान गए हैं,
इस पॉवर फुल प्रक्षेपास्त्र को ,
सीधे टारगेट पर चलाते हैं।
सुर्खियों में जगह पाते हैं।

जूते होते भी तो कितने प्यारे हैं,
मंदिर की सीढ़ियों पर रखे,
विविध रूपाकार वाले जूते,
किसका मन नहीं लुभाते हैं,
इसीलिए तो अक्सर गायब हो जाते हैं।

कुछ लोग अक्लमंद होते हैं,
जूते बगल में दाब ,पूजा कर आते हैं।
एक पंथ दो काज का, उदाहरण दे जाते हैं।

जूता अभिनंदन के भी काम आता है,
जूतों का हार पहना” बड़े लोगों” का
जुलूस निकाला जाता है।

जूता आपकी हैसियत की पहचान है।
जूता यदि तगड़ा है,
समाज में आपकी शान है।
फटा हुआ जूता
आपको मुँह चिढ़ाता है,
आपकी पंक्चर हुई ज़िंदगी की
असलियत बताता है।

आज जूते की माँग ,
बढ़ती ही जा रही है।
सारी दुनिया जूते में ही
समा रही है

आप भी जूते के उपासक बनिए,
सुबहो-शाम उसकी ही महिमा गाइए ।
उसे सीधा कीजिए, पॉलिश लगाइए,
तकदीर आपकी संवर जाएगी।
परिभाषा ज़िंदगी की बदल जाएगी।

वीणा गुप्त
नई दिल्ली

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