साहित्य

अम्मा

अनुपम चतुर्वेदी

ममता की थीं मूरत अम्मा,
सबकी बड़ी जरूरत अम्मा।
मुस्काती भोली-भाली सी,
घर की शुभ मुहूरत अम्मा।
उनसे ही दिन -रात हमारे,
इतनी थीं खुश सूरत अम्मा।
रिश्ते – नाते खूब फबे थे,
सेवा की थीं पूरक अम्मा।
खिलखिल रहते द्वार हमारे,
खुशियों की भरपूरत अम्मा।
बाबुल की थी हृदयवासिनी,
हसमुख सी खूबसूरत अम्मा।
मैं उनकी थी खूब लाडली,
मेरी इच्छा-पूरक अम्मा ।
उनका जाना ,सूना जीवन,
मन में बसी बन मूरत अम्मा

अनुपम चतुर्वेदी, सन्त कबीर नगर, उ०प्र०

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