“गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णुबाहु कृतोच्छाय गवां कोटिप्रदो भव।।
ये मन्त्र है अन्नकूट (गोवर्धन) पूजा का।
गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में एक प्रमुख लीला है।
नंद गांव, गोकुल में उस समय एक छोटा पर्वत था जसे अन्नकूट पर्वत कहा जाता था।
उस समय वही एक मात्र पर्वत उस क्षेत्र में प्रकृति का भंडार था इसलिए उसका संरक्षण आवश्यक था शायद इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने उस पर्वत की पूजा प्रारम्भ करवायी।
इस लीला में उन्होंने दिखाया कि कैसे पर्वत हर प्रकार से हमारी रक्षा करते हैं पर्वत वर्षा कराते भी हैं (बादलों को रोक कर) और पर्वत ही हमें अतिवर्षा से होने बाले मिट्टी कटान से बचाते भी हैं। वन पर्वत ही अपनी हरित सम्पदा से हमारे गो धन को पोषित करके उसमें वृद्धि करते हैं शायद इसीलिए अन्नकूट पर्वत को गोवर्धन का नाम दिया होगा।
इसी कथा में एक ओर संकेत मिलता है कि किसी भी देवता की पूजा स्वम् ईश्वर से बड़ी नहीं है।
यदि कोई देवता या मनुष्य अहंकार करता है तब उसकी पराजय निश्चित ही है जैसे इस कथा में स्वम् देवराज इंद्र अहंकार वश ईश्वर( भगवान श्रीकृष्ण) के विरुद्ध खड़े हो गए और अंत में अपनी पूरी मेघ-महामेघ सेना के साथ पराजित हुए।
अन्नकूट (गोवर्धन) पर्व हमें प्रकृति संरक्षण का ही सन्देश देता है। इसी में ईश्वर की सच्ची सेवा है।
इसी के साथ ही
🌳🎋🌲अन्नकूट पर्व,गोवर्धन पूजन की आपको शुभकामनाएं, श्रीकृष्ण जी आपको एवं आपके परिजनों को प्रसन्न रखें निरोगी रखें।
आपको यश कीर्ति एवं सामाजिक सम्मान मिले, आप सफलता के उच्चतम शिखर पर पंहुंचे।☃⛄
नृपेंद्र शर्मा “सागर”




