आलेख

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस

International Day of the Girl Child

डॉ अपराजिता शर्मा 

संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 11 अक्टूबर को मनाया जाता है।
इसका उद्देश्य बालिकाओं के अधिकारों, उनके सामने मौजूद चुनौतियों, तथा उन्हें सशक्त बनाने की पहलों पर ध्यान केंद्रित करना है।

इतिहास और शुरुआत

ये विचार मूल रूप से NGO “Plan International” की “Because I am a Girl” मुहीम से शुरू हुआ था।

इसके बाद कनाडा सरकार और अन्य समर्थकों ने संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पेश किया।

19 दिसंबर 2011 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव (Resolution 66/170) पारित किया, जिससे ये तय हुआ कि 11 अक्टूबर 2012 से यह दिन आधिकारिक रूप से मनाया जाएगा।

विषय (“थीम”) और प्राथमिकताएँ

हर साल इस दिन के लिए एक विशेष थीम रखी जाती है, जो कि उस वर्ष की प्रमुख चुनौतियों, बालिकाओं की ज़रूरतों और वैश्विक एजेंडों से जुड़ी होती है। उदाहरण के लिए:

वर्ष थीम

2012 Ending Child Marriage
2013 Innovating for Girls’ Education
2014 Empowering Adolescent Girls: Ending the Cycle of Violence
2016 Girls’ Progress = Goals’ Progress: What Counts for Girls
2024 Girls’ vision for the future
2025 The girl I am, the change I lead: Girls on the frontlines of crisis

वैश्विक कार्यक्रम और पहलें

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस सिर्फ एक दिन की याद नहीं है — इसके द्वारा कई देशों और संगठनों द्वारा बालिकाओं की स्थिति सुधारने के लिए साल भर विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ की जाती हैं। नीचे कुछ प्रमुख उदाहरण हैं:

1. शिक्षा और साक्षरता कार्यक्रम

“Innovating for Girls’ Education” थीम के तहत अनेक शिक्षा संस्थानों, NGO और सरकारें बालिकाओं के लिए विशेष पाठ्यक्रम, छात्रवृत्तियाँ, स्कूल उपयुक्त वातावरण आदि सुनिश्चित करने पर काम करती हैं।

UNESCO की “Her Education, Our Future” पहल — लड़कियों को पढ़ाई के क्षेत्र में समान अवसर दिलाना।

2. स्वास्थ्य और पोषण

किशोरियों के स्वास्थ्य, किशोर गर्भावस्था, बच्चा विवाह, पोषण और स्वच्छता (menstrual hygiene) से जुड़ी जागरूकता गतिविधियाँ।

 

3. लिंग-भेद, हिंसा और सुरक्षा

बालिकाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, शोषण, यौन भेदभाव, बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध कानूनी, सामाजिक एवं समुदाय-आधारित प्रतिक्रियाएँ।

 

4. बालिकाओं की भागीदारी और सशक्तिकरण

नेतृत्व कौशल विकास, युवा बालिकाओं को निर्णय लेने में शामिल करने की परियोजनाएँ, उनके विचारों को सार्वजनिक नीतियों में सम्मिलित करवाना।

“Girls on the frontlines of crisis” जैसी थीम जहाँ बालिकाएँ प्राकृतिक आपदाओं, संघर्ष, जलवायु परिवर्तन आदि चुनौतियों से जूझ रही हैं और उनके नेतृत्व को मान्यता मिलती है।

5. विश्व स्तर पर जागरूकता एवं अभियानों का विस्तार

सोशल मीडिया अभियानों (#DayoftheGirl, #HerEducationOurFuture आदि) के माध्यम से लोगों में जानकारी फैलाना।

सार्वजनिक कार्यक्रम, संगोष्ठियाँ, कार्यशालाएँ, कला-प्रदर्शनी, खेलकूद कार्यक्रम, सांस्कृतिक-एवं मनोरंजक कार्यक्रम जिसमें बालिकाएँ भाग लेती हों। उदाहरण के लिए, स्कूली बच्चे-छाताएँ कार्यक्रम, सांस्कृतिक नाटक आदि।

 

6. नीति और कानूनी सुधार

बाल विवाह की कानूनी न्यूनतम आयु तय करना या उसकी निगरानी करना।

लड़कियों के समान अधिकार सुनिश्चित करने वाले कानूनों का प्रवर्तन, लैंगिक समानता की नीति निर्माण प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित करना।

चुनौतियाँ एवं आगे का रास्ता

हालांकि कई प्रगति हुई है, कई चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं:

बहुत सी लड़कियाँ अभी भी स्कूल नहीं जा पा रही हैं या शिक्षा अधूरी छोड़ रही हैं।

लड़कियों को स्वास्थ्य सुविधाओं, सुरक्षित परिवहन, स्वच्छता सुविधाओं आदि में असमानता का सामना करना पड़ता है।

सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बाधाएँ जैसे–दलित या पिछड़ी जातियों की लड़कियाँ, संकट-ग्रस्त क्षेत्र की लड़कियाँ, प्रवासी या शरणार्थी-लड़कियों को विशेष रूप से हिंसा, भेदभाव और अवसरों की कमी होती है।

लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए पर्याप्त बजट और संसाधन अभी भी एक बड़ी कमी है।

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस ने विश्व भर में एक महत्वपूर्ण बहुउद्देश्यीय मंच तैयार किया है जहाँ:

बालिकाओं के अधिकारों की वकालत की जाती है,

उनकी चुनौतियों पर ध्यान लिया जाता है,

उन्हें सशक्त बनाने की नीतियाँ और कार्यक्रम बनाये जाते हैं,

और उनकी भागीदारी और नेतृत्व की भूमिका को बढ़ावा मिलता है।

आगे की दिशा में आवश्यक है कि ये केवल दिन भर की जागरूकता न बने, बल्कि दीर्घकालीन, टिकाऊ, और असरदार परिवर्तन सुनिश्चित करने वाले कार्यक्रम हों — स्कूलों, समुदायों, सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की साझेदारी से अब बात करें भारत की

भारत में अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस से जुड़े और बालिकाओं के सशक्तिकरण हेतु राज्य तथा सरकार द्वारा चलाए जा रहे कुछ प्रमुख कार्यक्रमों और पहलों की जानकारी है:

भारत में जारी कार्यक्रम एवं पहलें

1. Mission Shakti 5.0 (उत्तर प्रदेश)

सरकार की “Mission Shakti” मुहीम के अंतर्गत ‘बालिका सप्ताह’ (Girl Child Week) आयोजित किया गया है, जिस दौरान विशेष गतिविधियाँ कराई जाती हैं जैसे स्व-सुरक्षा कार्यशालाएँ, ड्राइविंग प्रशिक्षण (Driving My Dreams), मासिक स्वच्छता जागरूकता अभियान, आदि।

उदाहरण के लिए, ’Driving My Dreams’ कार्यक्रम के तहत लड़कियों को मुफ़्त ड्राइविंग प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि उन्हें आत्मनिर्भरता और स्वायत्तता मिल सके।

इसी तरह, Mission Shakti में बालिकाओं को एक दिन के लिए प्रशासनिक पदों (जैसे DM) सौंपने जैसी गतिविधियाँ भी शामिल हैं, जिससे उनके नेतृत्व की क्षमताएँ बढ़ें।

 

2. स्वास्थ्य एवं स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम

मासिक धर्म (menstrual hygiene) को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्य किए जा रहे हैं, मिथकों को तोड़ने, सुरक्षित उपयोग एवं डिस्पोजल के तरीकों की जानकारी देने हेतु अभियान चलाए जा रहे हैं।

संसाधनों और सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं ताकि किशोरी लड़कियों को स्वास्थ्य सुविधाएँ मिलें और सामाजिक कलंक कम हो।

 

3. शिक्षा-संबंधित योजनाएँ

कुछ समय से भारत में निम्न योजनाएँ विशेष रूप से बालिकाओं के हित में सक्रिय हैं:

Sabla (RGSEAG-Sabla – Rajiv Gandhi Scheme for Empowerment of Adolescent Girls): 11-18 वर्ष की बालिकाओं को सशक्त बनाने के लिए, स्वास्थ्य, पोषण, जीवन कौशल, शिक्षा एवं प्रशिक्षण हेतु यह योजना है।

Beti Bachao, Beti Padhao (BBBP): लिंगानुपात (Child Sex Ratio) में सुधार, बालिकाओं की शिक्षा एवं समग्र सशक्तिकरण सुनिश्चित करने हेतु एक प्रमुख केंद्र सरकार की योजना है।

Sukanya Samriddhi Yojana: यह योजना बालिकाओं की शिक्षा और विवाह संबंधी खर्चों के लिए वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से चलाई जाती है।

Kanyashree Prakalpa (पश्चिम बंगाल): इस योजना के माध्यम से कम-आय परिवारों की लड़कियों को आर्थिक सहायता मिलती है ताकि वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें और बाल विवाह से बच सकें।

 

4. स्थानीय स्तर पर सामुदायिक एवं सामाजिक कार्यक्रम

मदुरै (तमिलनाडु) में एक स्वयंसेवी संगठन “Sakthi-Vidiyal” ने अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर एक दो-दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें समाज के पिछड़े वर्गों की लड़कियों को शिक्षा एवं सशक्तिकरण की प्रेरणा दी गई, चैलेंजों पर चर्चा हुई।

कई राज्य सरकारों द्वारा One Stop Centres, Women Helpline (181), Mahila Shakti Kendras, आदि माध्यमों से लड़कियों एवं महिलाओं को सहायता, संरक्षण और कानूनी समर्थन उपलब्ध कराया जाता है।

 

5. नीति-परिवर्तन एवं कानूनों का सुदृढ़ीकरण

बाल विवाह, शिक्षा में लैंगिक असमानता, स्वास्थ्य सुविधाओं में भेदभाव आदि विषयों पर सरकारी नीतियाँ समय-समय पर सुदृढ़ की जा रही हैं।

उदाहरण के लिए अलग-अलग राज्यों में शिक्षा संस्थानों में लड़कियों के लिए जल एवं स्वच्छता सुविधाएँ बढ़ाने, लैंगिक सम्मान एवं सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए गए है।

चुनौतियाँ एवं सुझाव

चुनौतियाँ

1. ग्रामीण एवं पिछड़े इलाकों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक बाधाएँ अभी भी बड़ी हैं — बालिकाओं को पढ़ने भेजने में अभिभावकों की असहमति, लैंगिक विभाजन आदि।

2. इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी — स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट, सुरक्षित परिवहन, जल-पान की सुविधा आदि पूरी तरह नहीं हैं।

3. जागरूकता की कमी — स्वास्थ्य, पोषण और किशोरावस्था संबंधी मुद्दों पर जानकारी का अभाव है।

4. संसाधनों का अभाव — बजट, प्रशिक्षित शिक्षक, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, सामुदायिक समर्थन आदि की कमी।

 

सुझाव

1. समुदाय आधारित जागरूकता अभियानों को और सक्रिय बनाना चाहिए ताकि सामाजिक मनोवृत्तियों में बदलाव आए।

2. स्वास्थ्य और स्वच्छता सुविधाएँ जैसे कि स्कूलों में पर्याप्त टॉयलेट, सैनिटरी नैपकिन की उपलब्धता आदि सुनिश्चित करना।

3. लड़कियों को नेतृत्व अनुभव देना, कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी बढ़ाना (जैसे Mission Shakti में जो “एक दिन DM बनने” जैसा अवसर मिलता है)।

4. शिक्षा एवं प्रशिक्षण योजनाओं को सशक्त बनाना, विशेष रूप से तकनीकी, विज्ञान-विषयक और कौशल-आधारित शिक्षा के माध्यम से रोजगार के अवसर सुनिश्चित करना।

5. नियमित मूल्यांकन और निगरानी — योजनाओं के प्रभाव का आंकलन होना चाहिए ताकि सुधार हो सके।

🌸 अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस🌸

(International Day of the Girl Child)

संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 11 अक्टूबर को मनाया जाता है।
इसका उद्देश्य बालिकाओं के अधिकारों, उनके सामने मौजूद चुनौतियों, तथा उन्हें सशक्त बनाने की पहलों पर ध्यान केंद्रित करना है।

इतिहास और शुरुआत

ये विचार मूल रूप से NGO “Plan International” की “Because I am a Girl” मुहीम से शुरू हुआ था।

इसके बाद कनाडा सरकार और अन्य समर्थकों ने संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पेश किया।

19 दिसंबर 2011 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव (Resolution 66/170) पारित किया, जिससे ये तय हुआ कि 11 अक्टूबर 2012 से यह दिन आधिकारिक रूप से मनाया जाएगा।

विषय (“थीम”) और प्राथमिकताएँ

हर साल इस दिन के लिए एक विशेष थीम रखी जाती है, जो कि उस वर्ष की प्रमुख चुनौतियों, बालिकाओं की ज़रूरतों और वैश्विक एजेंडों से जुड़ी होती है। उदाहरण के लिए:

वर्ष थीम

2012 Ending Child Marriage
2013 Innovating for Girls’ Education
2014 Empowering Adolescent Girls: Ending the Cycle of Violence
2016 Girls’ Progress = Goals’ Progress: What Counts for Girls
2024 Girls’ vision for the future
2025 The girl I am, the change I lead: Girls on the frontlines of crisis

वैश्विक कार्यक्रम और पहलें

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस सिर्फ एक दिन की याद नहीं है — इसके द्वारा कई देशों और संगठनों द्वारा बालिकाओं की स्थिति सुधारने के लिए साल भर विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ की जाती हैं। नीचे कुछ प्रमुख उदाहरण हैं:

1. शिक्षा और साक्षरता कार्यक्रम

“Innovating for Girls’ Education” थीम के तहत अनेक शिक्षा संस्थानों, NGO और सरकारें बालिकाओं के लिए विशेष पाठ्यक्रम, छात्रवृत्तियाँ, स्कूल उपयुक्त वातावरण आदि सुनिश्चित करने पर काम करती हैं।

UNESCO की “Her Education, Our Future” पहल — लड़कियों को पढ़ाई के क्षेत्र में समान अवसर दिलाना।

2. स्वास्थ्य और पोषण

किशोरियों के स्वास्थ्य, किशोर गर्भावस्था, बच्चा विवाह, पोषण और स्वच्छता (menstrual hygiene) से जुड़ी जागरूकता गतिविधियाँ।

 

3. लिंग-भेद, हिंसा और सुरक्षा

बालिकाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, शोषण, यौन भेदभाव, बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध कानूनी, सामाजिक एवं समुदाय-आधारित प्रतिक्रियाएँ।

 

4. बालिकाओं की भागीदारी और सशक्तिकरण

नेतृत्व कौशल विकास, युवा बालिकाओं को निर्णय लेने में शामिल करने की परियोजनाएँ, उनके विचारों को सार्वजनिक नीतियों में सम्मिलित करवाना।

“Girls on the frontlines of crisis” जैसी थीम जहाँ बालिकाएँ प्राकृतिक आपदाओं, संघर्ष, जलवायु परिवर्तन आदि चुनौतियों से जूझ रही हैं और उनके नेतृत्व को मान्यता मिलती है।

5. विश्व स्तर पर जागरूकता एवं अभियानों का विस्तार

सोशल मीडिया अभियानों (#DayoftheGirl, #HerEducationOurFuture आदि) के माध्यम से लोगों में जानकारी फैलाना।

सार्वजनिक कार्यक्रम, संगोष्ठियाँ, कार्यशालाएँ, कला-प्रदर्शनी, खेलकूद कार्यक्रम, सांस्कृतिक-एवं मनोरंजक कार्यक्रम जिसमें बालिकाएँ भाग लेती हों। उदाहरण के लिए, स्कूली बच्चे-छाताएँ कार्यक्रम, सांस्कृतिक नाटक आदि।

 

6. नीति और कानूनी सुधार

बाल विवाह की कानूनी न्यूनतम आयु तय करना या उसकी निगरानी करना।

लड़कियों के समान अधिकार सुनिश्चित करने वाले कानूनों का प्रवर्तन, लैंगिक समानता की नीति निर्माण प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित करना।

चुनौतियाँ एवं आगे का रास्ता

हालांकि कई प्रगति हुई है, कई चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं:

बहुत सी लड़कियाँ अभी भी स्कूल नहीं जा पा रही हैं या शिक्षा अधूरी छोड़ रही हैं।

लड़कियों को स्वास्थ्य सुविधाओं, सुरक्षित परिवहन, स्वच्छता सुविधाओं आदि में असमानता का सामना करना पड़ता है।

सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बाधाएँ जैसे–दलित या पिछड़ी जातियों की लड़कियाँ, संकट-ग्रस्त क्षेत्र की लड़कियाँ, प्रवासी या शरणार्थी-लड़कियों को विशेष रूप से हिंसा, भेदभाव और अवसरों की कमी होती है।

लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए पर्याप्त बजट और संसाधन अभी भी एक बड़ी कमी है।

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस ने विश्व भर में एक महत्वपूर्ण बहुउद्देश्यीय मंच तैयार किया है जहाँ:

बालिकाओं के अधिकारों की वकालत की जाती है,

उनकी चुनौतियों पर ध्यान लिया जाता है,

उन्हें सशक्त बनाने की नीतियाँ और कार्यक्रम बनाये जाते हैं,

और उनकी भागीदारी और नेतृत्व की भूमिका को बढ़ावा मिलता है।

आगे की दिशा में आवश्यक है कि ये केवल दिन भर की जागरूकता न बने, बल्कि दीर्घकालीन, टिकाऊ, और असरदार परिवर्तन सुनिश्चित करने वाले कार्यक्रम हों — स्कूलों, समुदायों, सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की साझेदारी से अब बात करें भारत की

भारत में अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस से जुड़े और बालिकाओं के सशक्तिकरण हेतु राज्य तथा सरकार द्वारा चलाए जा रहे कुछ प्रमुख कार्यक्रमों और पहलों की जानकारी है:

भारत में जारी कार्यक्रम एवं पहलें

1. Mission Shakti 5.0 (उत्तर प्रदेश)

सरकार की “Mission Shakti” मुहीम के अंतर्गत ‘बालिका सप्ताह’ (Girl Child Week) आयोजित किया गया है, जिस दौरान विशेष गतिविधियाँ कराई जाती हैं जैसे स्व-सुरक्षा कार्यशालाएँ, ड्राइविंग प्रशिक्षण (Driving My Dreams), मासिक स्वच्छता जागरूकता अभियान, आदि।

उदाहरण के लिए, ’Driving My Dreams’ कार्यक्रम के तहत लड़कियों को मुफ़्त ड्राइविंग प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि उन्हें आत्मनिर्भरता और स्वायत्तता मिल सके।

इसी तरह, Mission Shakti में बालिकाओं को एक दिन के लिए प्रशासनिक पदों (जैसे DM) सौंपने जैसी गतिविधियाँ भी शामिल हैं, जिससे उनके नेतृत्व की क्षमताएँ बढ़ें।

 

2. स्वास्थ्य एवं स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम

मासिक धर्म (menstrual hygiene) को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्य किए जा रहे हैं, मिथकों को तोड़ने, सुरक्षित उपयोग एवं डिस्पोजल के तरीकों की जानकारी देने हेतु अभियान चलाए जा रहे हैं।

संसाधनों और सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं ताकि किशोरी लड़कियों को स्वास्थ्य सुविधाएँ मिलें और सामाजिक कलंक कम हो।

 

3. शिक्षा-संबंधित योजनाएँ

कुछ समय से भारत में निम्न योजनाएँ विशेष रूप से बालिकाओं के हित में सक्रिय हैं:

Sabla (RGSEAG-Sabla – Rajiv Gandhi Scheme for Empowerment of Adolescent Girls): 11-18 वर्ष की बालिकाओं को सशक्त बनाने के लिए, स्वास्थ्य, पोषण, जीवन कौशल, शिक्षा एवं प्रशिक्षण हेतु यह योजना है।

Beti Bachao, Beti Padhao (BBBP): लिंगानुपात (Child Sex Ratio) में सुधार, बालिकाओं की शिक्षा एवं समग्र सशक्तिकरण सुनिश्चित करने हेतु एक प्रमुख केंद्र सरकार की योजना है।

Sukanya Samriddhi Yojana: यह योजना बालिकाओं की शिक्षा और विवाह संबंधी खर्चों के लिए वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से चलाई जाती है।

Kanyashree Prakalpa (पश्चिम बंगाल): इस योजना के माध्यम से कम-आय परिवारों की लड़कियों को आर्थिक सहायता मिलती है ताकि वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें और बाल विवाह से बच सकें।

 

4. स्थानीय स्तर पर सामुदायिक एवं सामाजिक कार्यक्रम

मदुरै (तमिलनाडु) में एक स्वयंसेवी संगठन “Sakthi-Vidiyal” ने अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर एक दो-दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें समाज के पिछड़े वर्गों की लड़कियों को शिक्षा एवं सशक्तिकरण की प्रेरणा दी गई, चैलेंजों पर चर्चा हुई।

कई राज्य सरकारों द्वारा One Stop Centres, Women Helpline (181), Mahila Shakti Kendras, आदि माध्यमों से लड़कियों एवं महिलाओं को सहायता, संरक्षण और कानूनी समर्थन उपलब्ध कराया जाता है।

 

5. नीति-परिवर्तन एवं कानूनों का सुदृढ़ीकरण

बाल विवाह, शिक्षा में लैंगिक असमानता, स्वास्थ्य सुविधाओं में भेदभाव आदि विषयों पर सरकारी नीतियाँ समय-समय पर सुदृढ़ की जा रही हैं।

उदाहरण के लिए अलग-अलग राज्यों में शिक्षा संस्थानों में लड़कियों के लिए जल एवं स्वच्छता सुविधाएँ बढ़ाने, लैंगिक सम्मान एवं सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए गए है।

चुनौतियाँ एवं सुझाव

चुनौतियाँ

1. ग्रामीण एवं पिछड़े इलाकों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक बाधाएँ अभी भी बड़ी हैं — बालिकाओं को पढ़ने भेजने में अभिभावकों की असहमति, लैंगिक विभाजन आदि।

2. इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी — स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट, सुरक्षित परिवहन, जल-पान की सुविधा आदि पूरी तरह नहीं हैं।

3. जागरूकता की कमी — स्वास्थ्य, पोषण और किशोरावस्था संबंधी मुद्दों पर जानकारी का अभाव है।

4. संसाधनों का अभाव — बजट, प्रशिक्षित शिक्षक, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, सामुदायिक समर्थन आदि की कमी।

 

सुझाव

1. समुदाय आधारित जागरूकता अभियानों को और सक्रिय बनाना चाहिए ताकि सामाजिक मनोवृत्तियों में बदलाव आए।

2. स्वास्थ्य और स्वच्छता सुविधाएँ जैसे कि स्कूलों में पर्याप्त टॉयलेट, सैनिटरी नैपकिन की उपलब्धता आदि सुनिश्चित करना।

3. लड़कियों को नेतृत्व अनुभव देना, कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी बढ़ाना (जैसे Mission Shakti में जो “एक दिन DM बनने” जैसा अवसर मिलता है)।

4. शिक्षा एवं प्रशिक्षण योजनाओं को सशक्त बनाना, विशेष रूप से तकनीकी, विज्ञान-विषयक और कौशल-आधारित शिक्षा के माध्यम से रोजगार के अवसर सुनिश्चित करना।

5. नियमित मूल्यांकन और निगरानी — योजनाओं के प्रभाव का आंकलन होना चाहिए ताकि सुधार हो सके।

  1. डॉ अपराजिता शर्मा

रायपुर

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