
बाबा-अम्मा की दुलारी,
गौरी, आदिति, कृतिका प्यारी।
तीनों जैसे फूल खिले,
घर आँगन में रंग मिले।
कभी मुस्काती, कभी खिलखिलाती,
कभी-कभी वो रुठ भी जाती।
अम्मा मनाती, बाबा मनाते,
पल में गुस्सा, पल में हँसाते।
मनाते-मनाते थक जो जाते,
तभी तीनों दौड़ी आती।
बाबा की गोद में झट से चढ़ती,
अम्मा की ओढ़नी पकड़ हँसती।
कभी कहानियाँ, कभी मिठाई,
कभी गुड्डे की नई सगाई।
कभी झगड़ा, कभी मनुहार,
फिर गूँज उठे घर की दीवार।
उनके संग हर कोना बोले,
दीवारें भी गीतें तोले।
हँसी की लहरें दौड़ें चारों ओर,
घर बन जाए सपनों का छोर।
गौरी की समझ, आदिति की शरारत,
कृतिका की मीठी सी बातें।
तीनों संग जीवन सजे,
हर पल में रंग रचें।
बाबा-अम्मा की दुलारी,
तीनों उनकी जीवन क्यारी।
जहाँ प्रेम की धूप उतरती,
वहीं से दुनिया सुंदर लगती।
डाॅ.शिवेश्वर दत्त पाण्डेय
रुड़क, उत्तराखण्ड




