साहित्य

बात मेरे मन की : हमारी परम्परा हमारे त्योहार

संजय प्रधान

वो घर की परंपरा बहुत शानदार संस्मरण। घर से घर मिलकर बनता है कस्बा और कस्बे से शहर‌, फिर देश और फिर देश। फिर हम सब परिवारों की सुंदर शालीनता,वो घर की परम्परा जिसमें हम सब मिलजुल कर रहते हैं एक साथ सारे त्योहार मनाते हैं।
अभी पांच दिवसीय त्योहारों की श्रंखला बीती अब आने वाली है छठ पूजा, जिसमें छट्ठ मैया की पूजा की जाती है, सूर्य भगवान को अरघ दिया जाता है, पृथ्वी,जल, सूर्य और आकाश का सुंदर मिलन। प्रकृति से मनुष्य आस्था का मिलन कितना अनुपम दृश्य होता है उस दिन। सत्य तो यही था कि पहले छठ पूजा उत्सव पहले पूर्वांचल से जुड़ा था।
अब जैसे-जैसे उत्तराखंड से पूर्वांचल के लोग मिलने लगे तो हमारी परंपराओं से ये त्यौहार भी जूड़ गया।
कुछ वर्ष पहले ऋषिकेश में यह सुअवसर मिला था । अवसर छट्ठ पूजा की शाम का दृश्य था और गंगा जी में पूजन एक दम आलौकिक शाम को पश्चिम कि ओर जाता सूरज नीले आसमान में लालिमा । गंगा जी के तट पर सूप में सजे फूल फल सब्जी,हरी कलगी वाले गन्ने, चमकते दमकते चकोतरे और हवा में महकती सुगंध, श्रृंगार से सुसज्जित स्त्री,पुरुष,असंख्य हाथों से दिया जा रहा अरघ ।मुख से प्रा‌र्थना और बंद आंखों में सुंदर भविष्य के पूरे होने की कामना।
आह यूं लगा जैसे मैं भी उस दृश्य का हिस्सा बन गया और सूर्य भगवान का आशीर्वाद मुझे भी मिल गया।
संजय प्रधान,
देहरादून।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!