
बाग रह गई गांव
सभी फल बन बैठे शहरी ।
बचा झाड़ झंखाड़
लता को लूट गया प्रहरी।।
गाय नहीं है गोधन
अब गोदान छलावा है।
दान प्रसादी के युग में
शुभ भाव भुलावा है।
बंशी स्वर बेसुरे
गीत की भाषाएं बहरी।।
स्वाद हुए निष्प्राण
क्षुधा हावी संबंधों पे।
संबंधों की हार
बंधे हैं सब अनुबंधों पे।
प्रेम प्रीति के उजले जल पर
छल काई छहरी।।
विस्तृत है बाजार
यहां शुभ-लाभ बिकाऊ है।
अंदर है अभिशाप
सभी वरदान दिखाऊ है।
रामराज के दर्पण में
इक है खाईं गहरी।।
सतीश चन्द्र श्रीवास्तव
रामपुर मथुरा जिला सीतापुर



