आलेख

बी.एन.राव-संविधान का अदृश्य शिल्पी

उदय राज मिश्र

भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, जो न केवल राजनीतिक व्यवस्था का आधार है, बल्कि भारतीय समाज की बहुलता, समानता और न्याय के आदर्शों का प्रतीक भी है। इसके निर्माण में अनेक महान व्यक्तित्वों का योगदान रहा, जिनमें बी. एन. राव (बेनगल नर्सिंग राव) का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण और मौलिक था।

बी. एन. राव कौन थे

बेनगल नर्सिंग राव (B. N. Rau, 1887–1953) भारतीय सिविल सेवा (ICS) के एक विद्वान, विधिवेत्ता और न्यायविद थे। वे संविधान सभा के गठन से पहले ही कानून और शासन व्यवस्था में विशेषज्ञ माने जाते थे। उनका ज्ञान इतना गहरा था कि उन्हें संविधान निर्माण का “Architect in the Shadow” (छाया में कार्य करने वाले वास्तुकार) कहा जाता है।

संविधान निर्माण में बी. एन. राव की भूमिका

1. संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार (Constitutional Adviser) के रूप में 1946 में उनकी नियुक्ति हुई।

2. उन्होंने विश्व के अनेक देशों — जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, और सोवियत संघ — के संविधान का गहन अध्ययन किया।

3. इन सबके आधार पर उन्होंने भारत के लिए एक प्रारंभिक संविधान प्रारूप (Draft Outline) तैयार किया, जिसे संविधान सभा को विचारार्थ प्रस्तुत किया गया।

4. यह प्रारूप आगे चलकर संविधान सभा की Drafting Committee को दिया गया, जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर ने की।

डॉ. बी. आर. अम्बेडकर और बी. एन. राव का संबंध

अक्सर कहा जाता है कि जहाँ डॉ. अम्बेडकर संविधान के Drafting Committee के अध्यक्ष थे, वहीं बी. एन. राव उस समिति के प्रमुख सलाहकार और वास्तविक प्रारूप निर्माता* थे।

अम्बेडकर ने स्वयं स्वीकार किया था कि —

“डॉ. बी. एन. राव के द्वारा तैयार किया गया प्रारंभिक मसौदा हमारे संविधान निर्माण का आधार बना।”

इसका अर्थ यह नहीं कि संविधान केवल राव ने बनाया, बल्कि यह कि उनकी वैचारिक नींव और कानूनी रूपरेखा ने पूरे संविधान को दिशा दी।

राव के मुख्य योगदान

1. संवैधानिक ढाँचा निर्धारित किया – उन्होंने संसदीय शासन प्रणाली, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संघीय ढाँचा आदि का सुझाव दिया।

2. न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) और मौलिक अधिकारों की अवधारणा के लिए विदेशी उदाहरणों का अध्ययन कर भारतीय परिस्थितियों में उपयुक्त रूप प्रस्तावित किया।

3. राज्य नीति के निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy) का विचार आयरलैंड से लेकर भारतीय संविधान में सम्मिलित करने की अनुशंसा की।

4. संविधान का प्रारंभिक प्रारूप (First Draft) 30 अप्रैल 1947 को तैयार कर संविधान सभा को सौंपा।

वे बाद में संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में न्यायाधीश भी रहे।

उन्होंने भारत में न्यायिक प्रशासन सुधार के लिए भी अनेक सिफारिशें दीं।

संविधान के जनक के रूप में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का नाम उचित रूप से आदर पाता है, क्योंकि उन्होंने संविधान सभा में मसौदे को प्रस्तुत किया, उस पर बहस करवाई और संशोधन कर इसे अंतिम रूप दिया।
किन्तु यह भी सत्य है कि बी. एन. राव ने उस संविधान की मूल रूपरेखा और वैधानिक नींव रखी, जिस पर भारतीय लोकतंत्र खड़ा है।
इसलिए उन्हें संविधान निर्माण का “अदृश्य शिल्पी” या “Constitutional Architect behind the Draft” कहा जाना उचित है।

भूमिका व्यक्तित्व योगदान

संविधान के वैधानिक सलाहकार बी. एन. राव प्रारंभिक मसौदा और रूपरेखा तैयार की
संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष डॉ. बी. आर. अम्बेडकर मसौदे को अंतिम रूप देकर संविधान सभा में पारित कराया।

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