
कपड़ों का साइज घटा,अंग हो गये चीज।
अंग्रेजी के दौर में,दिखती नहीं तमीज।।
शर्म हया लज्जत गयी,हुए लोग स्वच्छंद।
अबके फूलों में कहाँ, मिलता है मकरंद।।
दिनदिन घरघर बन रहीं,उल्टी सीधी रील।
इतनी भी अच्छी नहीं,बेशर्मो को ढील।।
सरेआम तन बिक रहे,भले पिट रही भद्द।
फैशन के इस दौर में,अच्छे अच्छे रद्द।।
चिरयौवन की चाह में,बूढ़े भी हकलान।
ब्यूटीपार्लर में बसे,अब बुढ़ियों के प्रान।।
पुरुषों में दिखती नहीं,अब वीरों सी मूँछ।
सत्यनिष्ठ जो लोग हैं,कहीं न उनकी पूँछ।।
-डॉ. उदयराज मिश्र




