आलेख

भारतीय संस्कृति व राष्ट्रवाद का रक्षक: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

प्रो सुबोध झा आशु

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। हम अपनी स्थापना के101वें वर्ष में आज प्रवेश कर चुके हैं। हमारा ध्येय वाक्य है-“राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम” – कुछ बुद्धि विहीन लोग इसका विचित्र अर्थ निकालते हैं परंतु इसका वास्तविक अर्थ है कि ‘यह मेरा नहीं है, यह राष्ट्र का है।’ इसी भावना को मूलमंत्र बनाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी शाखाओं के माध्यम से व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर अनवरत चलायमान है। यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि एक संकल्प है, जो व्यक्ति को अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्र के लिए समर्पित होने की प्रेरणा देता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वास्तव में सामाजिक समरसता, सौहार्दपूर्ण वातावरण, भारतीय संस्कृति रक्षार्थ सम्पूर्ण समर्पण का भाव रखते हुए भारत को परम वैभव पर ले जाने की भरपूर कोशिश में संलग्न है। इसके लिए हमें समय समय पर अपनी योजनाओं में परिवर्तन की आवश्यकता पड़ी है और आगे भी जारी रहेगा। हमारी शाखा में स्वयंसेवकों में सांस्कृतिक, धार्मिक, शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक क्षमता में दक्षता भरी जाती है। हमारा मूलमंत्र ही राष्ट्रवाद,एक भारत श्रेष्ठ भारत। हां सिर्फ एक स्वाभाविक स्वार्थ है कि हम हिन्दू हितकारी बातें करते हैं परन्तु अन्य धर्म को भी उतना ही सम्मान देते हैं। हम अपनी शाखाओं में सबका स्वागत करते हैं। वह दिन दूर नहीं जब भारत वैश्विक स्तर पर पुनः विश्व गुरु बनकर उभरेगा और वर्तमान में यह स्पष्ट दृष्टिगोचर भी होती है।

*भारत माता की जय।*
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देशहित का कोई गीत हो दिल में, तो गुनगुना दीजिए;
गर थोड़ा भी देशप्रेम हो मन में,तो एकत्वभाव दिखा दीजिए,
गर है जीवन आज हमारा, पता नहीं कल हो ना हो;
गर चलना हो साथ संगठन में,तो अपना हाथ बढ़ा दीजिए।

ना तो कभी जीत का दंभ,
और ना ही हार का ग़म;
पर जहां कहीं भी हो कम,
वहां सदा खड़े मिलेंगे हम।

एक स्वयंसेवक की यही पहचान,
देशहित में सदा रहे सीना तान।
बनी रहे देश की आन बान शान,
हमारा तो बस यही एक अरमान।
(संघे शक्ति कलियुगे)
प्रो सुबोध झा आशु

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