
आज चंदा झोली फैलाए खड़ा है
तम के साये में नीरस सा क्यों पड़ा है,
क्या रवि से मांगता है प्रेम थोड़ा
या —सरासर चांदनी को मांगता है,
अपनी तृष्णा के समुन्द्र में पड़ा है,
आज चंदा झोली फैलाए खड़ा है,
क्यों कशिश सी जागती है मन में,
क्यों तड़प के सर में औंधे मुँह पड़ा है,
क्या हुआ जो एक रात काली आ गई,
कल को चाँदनी के मद में झूमेगा तू,
हौसले का नाम ही तो जिंदगी है,
इससे बेहतर क्या कहूँ -तू ही बता दे,
आज चंदा झोली फैलाए खड़ा है…।।
शशि कांत श्रीवास्तव




