
शुक्ल पक्ष की हो छठी, उत्तम कार्तिक मास।
होती सूर्य उपासना, छठ व्रत होये खास।।
चार दिनों तक ये चले, कठिन साधना पर्व।
छत्तिस घंटे को व्रती, ले उपवास सगर्व।।
धन वैभव संतान की, होत कामना पूर्ण।
आशिष देवे माँ छठी, देवे वर सम्पूर्ण।।
नए नाज औ’ खाण्ड से, बनते हैं पकवान।
सुबह शाम सारे व्रती, करते मंगल गान।।
करके सूर्य उपासना, भागें सारे रोग।
रहें सदा खुशहाल ही, हरषित होवें लोग।।
छठ पूजा देती सदा, समरसता सन्देश।
भाईचारा ही बढ़े, नहीं किसी से द्वेष।।
सूरजदेव उपासना, देती हमको सीख।
रहो सदा सम्भाव में, मृदुल बनो जस ईख।।
✍️ नरेश चन्द्र उनियाल,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।
सर्वथा मौलिक, स्वरचित एवं अप्रकाशित रचना।
✍️ नरेश चन्द्र उनियाल।



