
नहाय-खाय से तन हुआ, निर्मल मन का भाव।
खरना में उपवास से, जागी श्रद्धा छाव।।
संध्या बेला में दिया, अस्त रवि को अर्घ्य।
नदी किनारे गूँजती, जय छठी की गर्घ्य।।
भोर भये जब किरण फिरी, पूजे उषा रानी।
अर्घ्य लिए व्रती खड़े, भक्ति-भाव कहानी।।
नदियों घाट सजाय गए, दीपों की झिलमिल।
सूर्य देव को दे रहे, नम्र प्रणाम निर्मल।।
माताएँ रखती व्रत कठिन, संतान हित प्यारी।
आस्था का यह पर्व छठ, जीवन में उजियारी।।
सच्चे मन से जो करे, यह पूजा मन भावे।
सुख, समृद्धि, आरोग्य दे, छठ माई वर पावे।।
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार


