साहित्य

डॉ रामशंकर चंचल की अद्भुत, कालजयी कृति, अनन्या की डायरी

सागर यादव 'जख्मी'

मनुष्य के अस्तित्व का सबसे नाज़ुक और गहरा पक्ष है उसका मन। जब यह मन किसी स्त्री का होता है, तो वह संवेदना, सहनशीलता, करुणा और संघर्ष का जीवंत प्रतीक बन जाता है। डॉ. रामशंकर ‘चंचल’ का उपन्यास *“अनन्या की डायरी”* केवल एक स्त्री की व्यथा नहीं, बल्कि उन असंख्य अनन्याओं की गवाही है जो समाज की परंपराओं और रिश्तों के नाम पर अपने सपनों, अपने अस्तित्व और अपनी आवाज़ को दफना देती हैं। यह पुस्तक पाठक को भीतर तक झकझोर देती है, क्योंकि इसकी हर पंक्ति में दर्द की सच्चाई और स्त्री की मौन चीख दर्ज है। अनन्या की कहानी किसी एक नारी की नहीं, बल्कि उस पूरे वर्ग की प्रतिनिधि है, जो अपने ही घर की दीवारों में कैद होकर भी दुनिया के लिए मुस्कान का चेहरा बनाए रखती हैं।

कहानी की शुरुआत एक सादे और सुंदर गाँव से होती है, जहाँ प्रकृति का सौंदर्य, परिवार का स्नेह और एक नन्ही लड़की की मासूम कल्पनाएँ जीवन का सबसे पवित्र चित्र रचती हैं। लेकिन जैसे ही विवाह का अध्याय खुलता है, अनन्या का संसार उलट जाता है। उसका जीवन प्रेम से पीड़ा की, विश्वास से अपमान की, और आत्मबलिदान से आत्मसाक्षात्कार की यात्रा बन जाता है। लेखक ने बड़ी सूक्ष्मता से दिखाया है कि किस प्रकार विवाह जैसे पवित्र बंधन में भी एक स्त्री का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त कर दिया जाता है। समाज उसे सहनशीलता का प्रतीक कहकर उसकी पीड़ा को सामान्य बना देता है।

डॉ. ‘चंचल’ ने इस कृति के माध्यम से केवल कथा नहीं लिखी, बल्कि एक स्त्री के भीतर छिपे संघर्ष और मौन प्रतिरोध की आवाज़ को शब्द दिए हैं। “अनन्या की डायरी” दरअसल एक ऐसी स्त्री की आत्मकथा है जो बोलती नहीं, पर अपनी डायरी के पन्नों पर हर अत्याचार, हर अपमान, हर टूटन और हर जागरण को दर्ज करती जाती है। यह उपन्यास हमें यह सोचने पर विवश करता है कि समाज में नारी का स्थान आखिर कब तक केवल सहने और चुप रहने वाले रूप तक सीमित रहेगा।
अनन्या की संवेदनशीलता, उसकी करुणा, उसका मौन और उसका आत्मसंघर्ष इस उपन्यास को एक गहन मनोवैज्ञानिक गहराई प्रदान करता है। लेखक ने स्त्री के मन की उस पीड़ा को उकेरा है जो बाहर से दिखाई नहीं देती, लेकिन भीतर एक तूफान बनकर उठती रहती है। यह कृति बताती है कि किसी भी रिश्ते की असली नींव प्रेम, विश्वास और समानता पर टिकती है, और जब ये तीनों टूट जाते हैं तो विवाह केवल एक सामाजिक बंधन बनकर रह जाता है।

डॉ. रामशंकर ‘चंचल’ की लेखनी की सबसे बड़ी विशेषता उसकी सादगी और सच्चाई है। वे किसी दार्शनिक भाषा या आडंबर में नहीं उलझते, बल्कि सीधे दिल से लिखते हैं। उनकी हर पंक्ति में एक अनुभवी समाजदर्शी लेखक का दृष्टिकोण झलकता है। वे नारी को दया या सहानुभूति की दृष्टि से नहीं, बल्कि शक्ति और सृजन की दृष्टि से देखते हैं। “अनन्या की डायरी” में नारी केवल दुख भोगने वाली नहीं, बल्कि अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठकर आत्मबोध की ओर बढ़ने वाली एक चेतना बन जाती है।

यह उपन्यास हमें यह भी सिखाता है कि मौन भी एक प्रतिरोध है। अनन्या भले ही बाहरी रूप से कमजोर लगे, पर भीतर वह एक पर्वत जैसी अडिग है। उसने जितना सहा, उतना ही समझा भी। उसने जाना कि स्त्री की सबसे बड़ी ताकत उसका धैर्य और उसका आत्मसम्मान है। अंततः जब वह अपने भीतर की शक्ति को पहचानती है, तब वह केवल एक स्त्री नहीं रहती — वह एक प्रतीक बन जाती है, उस संघर्ष का प्रतीक जो हर नारी के भीतर चलता है।

“अनन्या की डायरी” के पन्नों को पढ़ते हुए पाठक केवल एक कहानी नहीं पढ़ता, बल्कि एक आत्मा को महसूस करता है। यह उपन्यास हमारे समाज के उन नकाबों को उतारता है जो सभ्यता के नाम पर स्त्री की स्वतंत्रता को कैद कर देते हैं। यह हमें झकझोरता है, रुलाता है और अंत में सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम सच में आधुनिक हो पाए हैं, या अब भी उसी अंधविश्वास, अहंकार और असमानता की गिरफ्त में हैं।
यह कृति केवल साहित्य नहीं, बल्कि समाज का आईना है। यह बताती है कि नारी केवल सहनशील नहीं, बल्कि परिवर्तन की आधारशिला है। वह टूटकर भी सृजन करती है, रोकर भी मुस्कुराती है, और अपमान में भी गरिमा ढूंढ लेती है। यही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है, यही उसका सौंदर्य है।

“अनन्या की डायरी” उन सभी स्त्रियों को समर्पित है जिन्होंने अपने हिस्से की चुप्पी को शब्दों में बदलने का साहस किया। यह उपन्यास हर पुरुष के लिए आत्ममंथन का अवसर है और हर स्त्री के लिए यह एक प्रेरणा कि जीवन में चाहे कितनी भी अंधकारमय रात हो, अंततः उजाला उसी के भीतर से जन्म लेता है।

यह रचना न केवल साहित्यिक दृष्टि से सशक्त है, बल्कि सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और मानवीय मूल्यों के स्तर पर भी अत्यंत प्रभावशाली है। डॉ. ‘चंचल’ की कलम ने दर्द को सौंदर्य में और पीड़ा को शक्ति में रूपांतरित कर दिया है। “अनन्या की डायरी” केवल एक उपन्यास नहीं, बल्कि एक जागरण है — आत्मसम्मान, आत्मबल और आत्मविश्वास का जागरण।
यह पुस्तक हर उस पाठक को भीतर तक छू जाएगी जो जीवन, प्रेम और रिश्तों की सच्चाई को समझने की क्षमता रखता है। अनन्या की कहानी शायद हर घर की दीवारों में गूंजती एक अधूरी पुकार है — और यही इस उपन्यास की सबसे बड़ी सफलता है।

-सागर यादव ‘जख्मी’

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