साहित्य

दीप

चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन "

तिमिर की झलक अब झितिज छोर पे है,
श्याम आँचल को अपने,उढ़ाने ना पाये ।
जलाओ दिये तुम,स्नेह भरभर के इतने,
कि तमिस्रा कलुष की ढहरने ना पाये ।।

तुम बरसो शलभ, दीप की वर्तिका पर ,
रहे ध्यान इतना, ज्योति बुझने ना पाये।
निशि भर जले दीप, तुम भी जलो पर,
ज्योति का पर्व मावस निगलने ना पाये।।

निकट दीप ज्योतित,दीपमालिक सजाओ,
तिमि पावन धरा पर,कहीं उतरने ना पाये।
दीप कज्जल बनाये,अगर स्याह धुम्र रेखा,
ये कलुष श्याम आँचल को करने ना पाये।।

मदमावस की मदिरा से सींचो गले को,
पर कदम भी तुम्हारे बहकने ना पाये।
लिये ज्योति का भार प्रखरित रहो तुम,
ये सुधा रस कलश का छलकने ना पाये।।

✍️ चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा “अकिंचन “गोरखपूर।
चलभाष -९३०५९८८२५२🚩

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