साहित्य

दीप जलाओ ज्ञान के — यही सच्ची दिवाली है

डॉ सुरेश जांगडा

जब तमस घिरे जीवन पथ पर,
दीप बने विचारों के,
राष्ट्र जागे नवतेज लिए,
संस्कारों के पुकारों से।

यह दीवाली केवल उत्सव नहीं,
एक युग-वाणी है,
जो कहती — “उठो, जलो, चलो”,
यह भारत की कहानी है।

हर दीपक में संदेश छिपा,
श्रम, त्याग और तप का,
हर लौ में जलता गौरव
भारत के अद्भुत स्वरूप का।

सिर्फ़ घर-आँगन नहीं सजाओ,
सजाओ अंतःकरण भी,
अंधकार मिटे अज्ञान का जब,
वही सच्ची रोशनी।

माँ भारती के चरणों में फिर,
दीप जलाओ श्रद्धा के,
राष्ट्रधर्म का यज्ञ यही है,
दीप बनो संकल्प के।

भेद-भाव, लोभ, स्वार्थ की
अब दीवारें तोड़ो तुम,
भारत फिर से विश्वगुरु बने,
ऐसा प्रण जो जोड़ो तुम।

मन के भीतर जो ज्योति जले,
वही असली दीवाली है,
सत्य, प्रेम और कर्म का पथ
यही भारत की लाली है।

डॉ सुरेश जांगडा
राजकीय महाविद्यालय सांपला, रोहतक (हरियाणा)

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