साहित्य

दीपावाली पर शहर चला आया मांगू

डॉ रामशंकर चंचल

करोड़ों रुपयों के
फटाखों का अद्भुत शोर मचा था
आकाश प्रदूषण से
पूरी तरह काला दिखाई दे रहा था
और गांव से चला
नमक, मिर्च,लेने
मांगू शहर में घुस आया
सोच रहा था
इतनी अद्भुत रोशनी
क्या सूरज उतर आया
इतना शोर मचा
कोई हादसा हुआ
इतना,दुआं
कहीं आग लगी
बेचारा मांगू क्या जाने
यह शहर के सम्पन्न लोगों का
पर्व है, दीपावाली
तुम रोज़ रोज़ जलाते हो
दीप अपने आंगन में
इन से यह नहीं होता
इसलिए ये एक दिन खूब रोशनी
कर देते है, इनका भव्य मंदिरों में
बैठा भगवान भी खुश
और ये भी
वैसे तो ये सम्पन्न लोग
रोज दीपावली सी खुशी
मानते हैं
खूब पकवान खाते
अच्छा पहनते
नचाते है इस तरह
जैसे दुनिया में यही है
आज कुछ ज्यादा उछाले मार
कर रहे है
मांगू को बता रहा था
मांगू चुपचाप , मुझे देख रहा था
अंत में एक लंबी सांस लेते हुए
मांगू ने गर्दन हिलाई
जैसे सब कुछ समझ गया और
चल दिया, वापस
कुछ उदास हो
अपने गांव
सोच रहा था
अच्छा हुआ
मांगू ने ही देखी
यह दीपावली
यदि गांव पूरा आ जाता तो
सभी दुःखी होते
में किस किस,,,

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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