
दीप जले हर आँगन द्वारे,
खुशियों का सागर लहराया,
धनतेरस की पावन बेला में,
हर मन में उल्लास समाया।
सोने-चाँदी की जगमग ज्योति,
लक्ष्मी का स्वागत करती है,
सजधज कर बैठी गृहलक्ष्मी,
आरती थाली भरती है।
दीपक, धूप, कलश और झाड़ू
सबमें शुभता झरती है,
हर खरीद में आशा झलके,
हर धड़कन पूजा करती है।
बाज़ारों में रौनक छाई,
हर दिल में उम्मीद जगी है,
आज खरीदें कुछ नया
यही परंपरा सजी है।
पर याद रहे इस धनतेरस पर,
केवल धातु न पूजें हम,
सच्चा धन है सच्चे कर्म का,
उसको जीवन में साधें हम।
लक्ष्मी तभी बसेगी घर में,
जब मन में शुचि विश्वास रहे,
धन से बढ़कर धर्म को मानें,
यही उजाला पास रहे।
आओ करें प्रण इस पर्व पर,
जीवन को उजियार बनाएं,
धन की पूजा के संग,
मानवता का दीप जलाएं।
डॉ सुरेश जांगडा
राजकीय महाविद्यालय सांपला, रोहतक (हरियाणा)



