साहित्य

धर्म ग्रंथ के पन्नों में

सतीश चन्द्र श्रीवास्तव

धर्म ग्रंथ के पन्नों में सब रक्त सने इतिहास हैं।
धर्म युद्ध के मार काट में देवदूत सब पास हैं।।
सिर्फ धर्म विस्तार वाद के
सब अक्षर औजार हैं।
ओहदागीरी छल प्रपंच के
पाठों में व्यभिचार हैं।
मासूमों मुजलिमो औरतों के हत्यारे खास हैं।।
दया तिरोहित समुदायों में
अपशब्दों का का शठ नर्तन।
सत्ता कुछ हाथों तक सीमित
छद्म भक्ति का आवर्तन।
कुछ गद्दी धर,बाकी सारे अव्यवस्था के दास हैं।।
ईश्वरीय आदेश सितमगर,
डरा सके वह मौला है।
ढकोसलों के अध्यायों नें
मजहब का धन तौला है।
आसमान का रौब दिखा कर खूब मनाते रास हैं।।
अस्त्र शस्त्र उन्माद भरे हैं
आदिम युगी पुथन्नों में।
भीतर कुत्सित रोग छुपे हैं
आडंबरी सुथन्नों में।
परलौकिक भय की नाखूनों में घुसेड़ते फांस हैं।।
तकरीरों में नशा मजहबी
कत्लोगारद उकसाते।
उढ़ा धर्म का कफन शांति पर
बंटती जहरीली बातें।
चमन बांटता खुशबू उसका शोहदे करते नाश हैं।।

सतीश चन्द्र श्रीवास्तव
रामपुर मथुरा जिला सीतापुर

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