उत्तराखंड

दिव्य गंगा सेवा मिशन मुख्यालय पर साहित्यिक संगोष्ठी — गंगा और भारतीय संस्कृति पर सार्थक विमर्श, वरिष्ठ साहित्यकार सम्मानित

“साहित्य समाज की आत्मा का प्रतिबिंब है, गंगा हमारी संस्कृति की जीवनरेखा” — संगोष्ठी में गूँजे साहित्यिक स्वर

  रुड़की। दिव्य गंगा सेवा मिशन के मुख्यालय पर रविवार को “गंगा और भारतीय संस्कृति” विषय पर एक गरिमामयी साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में साहित्य, संस्कृति और अध्यात्म के क्षेत्र में सक्रिय कई विद्वान साहित्यकारों ने भाग लिया। कार्यक्रम का उद्देश्य साहित्य के माध्यम से गंगा की महिमा, भारतीय संस्कृति की मूल भावना और समाज में सांस्कृतिक चेतना का प्रसार करना था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वयोवृद्ध साहित्यकार आ. नरेश राजवंशी ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार एवं ‘ओपन डोर’ पत्रिका के संपादक आ. अमन कुमार त्यागी, तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में समीक्षक, शिक्षक एवं वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. अनिल शर्मा ‘अनिल’ उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन मिशन के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक डाॅ. शिवेश्वर पाण्डेय ने किया।

संगोष्ठी के दौरान साहित्य, अध्यात्म और संस्कृति के गहरे संबंध पर विचारोत्तेजक विमर्श हुआ।


मुख्य अतिथि आ. अमन कुमार त्यागी ने कहा— “साहित्य समाज की आत्मा का प्रतिबिंब है। गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, धर्म और अध्यात्म की जीवनरेखा है। साहित्य के माध्यम से गंगा की महिमा और सांस्कृतिक चेतना को जन-जन तक पहुँचाना आज की आवश्यकता है।”

विशिष्ट अतिथि डाॅ. अनिल शर्मा ‘अनिल’ ने कहा— “धर्म और अध्यात्म के बिना साहित्य अधूरा है। गंगा हमारी सभ्यता का आधार है। आज साहित्यकारों की जिम्मेदारी है कि वे अपनी लेखनी से गंगा संरक्षण और सांस्कृतिक जागरण का संदेश समाज तक पहुँचाएँ।”

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे आ. नरेश राजवंशी ने कहा— “गंगा के बिना भारत की कल्पना अधूरी है। साहित्य का कार्य समाज को जोड़ना और उसे अध्यात्म से ऊँचाई देना है। दिव्य गंगा सेवा मिशन इस दिशा में अनुकरणीय कार्य कर रहा है।”

मिशन के राष्ट्रीय संयोजक केशव पाण्डेय ने संगठन की भावी योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा— “दिव्य गंगा सेवा मिशन आने वाले समय में गंगा संरक्षण, सांस्कृतिक उत्थान और साहित्यिक चेतना के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाएगा। इसमें साहित्यकारों, चिंतकों और अध्यात्म मार्गदर्शकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।”

कार्यक्रम का संचालन कर रहे डाॅ. शिवेश्वर पाण्डेय ने कहा— “गंगा केवल जलधारा नहीं, बल्कि यह भारत की सनातन संस्कृति का शाश्वत प्रतीक है। साहित्य और अध्यात्म मिलकर ही समाज में स्थायी परिवर्तन ला सकते हैं। मिशन का उद्देश्य गंगा संरक्षण के साथ-साथ साहित्य और संस्कृति का पुनर्जागरण करना भी है।”

संगोष्ठी के समापन सत्र में तीन वरिष्ठ साहित्यकारों को गंगा जी का चित्र और सम्मान पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। मुख्य अतिथि आ. अमन कुमार त्यागी, विशिष्ट अतिथि डाॅ. अनिल शर्मा ‘अनिल’, और अध्यक्ष आ. नरेश राजवंशी को मिशन के राष्ट्रीय संयोजक केशव पाण्डेय एवं संचालक डाॅ. शिवेश्वर पाण्डेय ने स्मृति चिन्ह और सम्मान पत्र भेंट कर अभिनंदन किया।

कार्यक्रम के दौरान उपस्थित प्रबुद्ध जनों ने मिशन की पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह संगोष्ठी केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि संस्कृति और साहित्य के पुनर्जागरण की दिशा में एक सशक्त कदम है।

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