साहित्य

दोहे “शरद पूर्णिमा”

डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

दोहे “शरद पूर्णिमा  की हार्दिक शुभकामनाएँ”
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘म

शशि की किरणों में भरी, सबसे अधिक उजास।
शरदपूर्णिमा धरा पर, लाती है उल्लास।१।

लक्ष्मीमाता धरा पर , आने को तैयार।
शरदपूर्णिमा पर्व पर, लेती हैं अवतार।२।

त्यौहारों का आगमन, करे कार्तिक मास।
सरदी का होने लगा, अब कुछ-कुछ आभास।३।

दीपमालिका आ रही, लेकर अब उपहार।
देता शुभसन्देश है, पावस का त्यौहार।४।

दमक उठे हैं रात में, कोठी-महल-कुटीर।
नदियों में बहने लगा, निर्मल पावन नीर।५।

अमृत वर्षा कर रही, शरदपूर्णिमा रात।
आज अनोखी दे रहा, शरदचन्द्र सौगात।६।

खिला हुआ है गगन में, उज्जवल-धवल मयंक।
नवल-युगल मिलते गले, होकर आज निशंक।७।

निर्मल हो बहने लगा, सरिताओं में नीर।
मन्द-मन्द चलने लगा, शीतल-सुखद समीर।८।

शरदपूर्णिमा दे रही, सबको यह सन्देश।
तन-मन, आँगन-गेह का, करो स्वच्छ परिवेश।९।

फसल धान की आ गयी, खुशियाँ लेकर साथ।
भरा रहेगा धान्य से, मजदूरों का हाथ।१०।

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