साहित्य

फसल लोक गीत

विद्या शंकर विद्यार्थी

धानवा से सजल बधार हो,
अगहन आ गइले गोरिया, धानवा,,,।

अन्न धन के लछिमी खेतवा में उतरली
खेत खरिहनिया आ मकनिया संवरली
दुअरिया संवरली हमार हो, अगहन,,,,।

बहे पुरवइया तऽ बिहंसेला परानवा
गावे विजयमल हो कोठीला पेहनवा
जागल बा किस्मत हमार हो, अगहन,,,,।

भोर के पहरिया कियरिया शीतिआइल
उगल किरिनिया त शीतिया ओराइल
चलऽ धानी अब बधार हो, अगहन,,,,,,।

टिकुली किनाई धानी चुनरी किनाई
अंगुरी के पोरिया हो मुनरी किनाईं
नयना सजइहऽ रतनार हो, अगहन,,,,।
विद्या शंकर विद्यार्थी रामगढ़, झारखंड

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