आलेख

गंगा को भी इसी तरह के बलिदान, समय दान की आवश्यकता है

मंच हर कोई सजाता ही रहा है, साकारों के साथ ही नाकारों को भी यहां पुरस्कार बांटा जाता रहा है

उन्हें कई धमकियाँ मिलीं; कुछ यात्रियों ने एक बार उनके सिर पर रिवॉल्वर तान दी, सफ़ारी पार्क गेट के पास हॉकर्स ने पेट्रोल डालकर उन्हें जलाने की कोशिश की… लेकिन वह न डरीं, न पीछे हटीं।

हर रोज़ सुबह पाँच से दस बजे तक 50 वर्षीय सुमिता बंद्योपाध्याय हाथ में लाठी लेकर रवींद्र सरोवर झील की पहरेदारी करती हैं।

उनकी निगरानी में झील में कपड़े धोना, नहाना, कचरा फेंकना सब मना है। कोर्ट से लड़ाई कर उन्होंने झील में छठ पूजा पर भी रोक लगवाई। नतीजा— उनके कई दुश्मन बन गए।

लेकिन वह निडर होकर झील की मछलियों, पक्षियों और पेड़ों को बचाने के लिए लगातार काम कर रही हैं। यह सरोवर मानो उनका साथी बन चुका है।

सुमिता देवी कहती हैं:
“लाठी मेरे हाथ में रहती है, लेकिन मैंने कभी इसे किसी पर इस्तेमाल नहीं किया। अब यही मेरी पहचान बन गई है। मैं चाहती हूँ अनुशासन। किसी जगह पर अगर अनुशासन नहीं रहेगा, तो उस जगह का कभी विकास नहीं हो पाएगा।”

सुमिता, आपके साहस और हिम्मत को सलाम।

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