दीपावली के पाँच दिवसीय पर्व में गोवर्धन पूजा का अपना एक विशेष स्थान है। यह केवल भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं को याद करने का अवसर नहीं है, बल्कि यह हमें प्रकृति और जीवन के गहरे संबंध की अनुभूति कराता है। जब हम प्रतिपदा के अगले दिन, “अन्नकूट” के रूप में यह पर्व मनाते हैं, तो केवल अपने आंगन को सजाने तक सीमित नहीं रहते। हम अपने भीतर और बाहर के संसार को सम्मान और स्नेह की दृष्टि से देखते हैं। गाँव और परिवार के लोग मिलकर इस दिन को मनाते हैं और एक साथ पूजा, भोजन और प्रसाद वितरण करते हैं। यही साझा अनुभव हमारे दिलों में एक दूसरे के प्रति अपनापन और प्रकृति के प्रति प्रेम की भावना जगाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब इंद्र देव क्रोध में वृंदावन गाँव पर वर्षा और तूफ़ान भेजने वाले थे, तब बालक श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की छाया में पूरे गाँव को सुरक्षित रखा। यह केवल ईश्वरीय लीला नहीं है; यह हमें यह एहसास कराती है कि प्रकृति की सुरक्षा में हमारा जीवन और जिम्मेदारी जुड़ी हुई है। यह संदेश हमारे भीतर गहराई से उतरता है और हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपने पर्यावरण और जीवन के संतुलन के प्रति सचेत हैं।
गोवर्धन पूजा का एक और सुंदर पहलू है — मिट्टी, घास और पशुपालन का सम्मान। लोग अपने आंगन में छोटे गोवर्धन पर्वत बनाते हैं, उसे फूलों, फलों, अनाज और जल से सजाते हैं। यह परंपरा हमें याद दिलाती है कि हर तत्व, चाहे मिट्टी हो, जल हो, पेड़-पौधे हों या पशु जीवन, हमारा आदर और संरक्षण पाने के हकदार हैं। यही जीवन की स्थिरता और शांति का मूल मंत्र है।
अन्नकूट का आयोजन गोवर्धन पर्व की आत्मा है। जब हम विभिन्न प्रकार के अन्न और व्यंजन गोवर्धन पर्वत के समीप अर्पित करते हैं, तो हम केवल भौतिक पूजन नहीं करते, बल्कि अपने मन में कृतज्ञता की भावना जागृत करते हैं। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम सिर्फ ग्रहण करने वाले हैं या वास्तव में प्रकृति के संरक्षक भी हैं। यही आत्मचिंतन इस पर्व का असली संदेश है।
गोवर्धन पूजा हमें आध्यात्मिक दृष्टि से संतुलन, कृतज्ञता और निर्भयता का अनुभव कराती है। जब हम प्रकृति का सम्मान करते हैं, तो हमारे भीतर का मन भी स्थिर और संतुलित हो जाता है। यह पर्व हमें अहंकार और लालच को नियंत्रित करना सिखाता है और दूसरों के प्रति करुणा, सहयोग और अपनापन पैदा करता है।
आजकल हमारे जीवन में प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग और प्रदूषण चिंता का विषय बन चुका है। ऐसे समय में गोवर्धन पूजा हमें याद दिलाती है कि जल, मिट्टी, पेड़-पौधे और पशु जीवन की रक्षा करना केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि एक जीवनोपयोगी आवश्यकता है। छोटे-छोटे प्रयास ही पर्यावरण संरक्षण की नींव रखते हैं।
पर्व का सामाजिक और पारिवारिक पहलू भी बहुत महत्वपूर्ण है। जब परिवार और समुदाय मिलकर गोवर्धन पर्वत का पूजन करते हैं, अन्नकूट का वितरण करते हैं और साझा भोजन करते हैं, तो केवल सामाजिक मेलजोल बढ़ता ही नहीं, बल्कि बच्चों के दिल में परंपरा और प्रकृति के प्रति सम्मान की भावना भी गहराती है। यह अनुभव उन्हें जीवन भर याद रहता है।
गोवर्धन पूजा यह भी याद दिलाती है कि मानव और प्रकृति का संबंध अविभाज्य है। जब तक हम अपने वातावरण की रक्षा नहीं करेंगे, स्थायी सुख और शांति असंभव है। यह पर्व हमें बताता है कि प्रकृति की सुरक्षा सिर्फ कर्तव्य नहीं, बल्कि आध्यात्मिक साधना का हिस्सा है।
इस तरह, गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि जीवन और प्रकृति के प्रति जागरूकता का पर्व है। यह हमें याद दिलाती है कि मानव केवल ग्रहण करने वाला नहीं, बल्कि प्रकृति का संरक्षक और संतुलन बनाए रखने वाला प्राणी है। इस पर्व के माध्यम से हमारी चेतना जागृत होती है और हम पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।
अत:, गोवर्धन पूजा हमें यह संदेश देती है कि जीवन में संतुलन, कृतज्ञता और प्रकृति का सम्मान अत्यंत आवश्यक हैं। यह पर्व हमें प्रेरित करता है कि अपने व्यवहार, सोच और कर्मों में ऐसा संतुलन रखें कि हमारे भीतर और बाहर दोनों जगत में प्रकाश फैले। गोवर्धन पूजा हमें स्मरण कराती है — *“प्रकृति का सम्मान, जीवन का संरक्षण, यही सच्ची आध्यात्मिक साधना है।”*
✍️ योगेश ग़हतोड़ी “यश”


