
क़ाफिया – ई ,रदीफ -है
बहर -122,122,122,122
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ख़ुदा से हरिक को मुहब्बत मिली है।
मिली है सनम ज़िन्दगी सज गई है।।
दिलों में बसी है कली में बसी है।
बहकती फिज़ा में मुहब्बत छुपी है।।
गुज़ारा सनम बिन नहीं हो सकेगा।
तुझी से जुड़ी सांस की ये कड़ी है।।
तुझे देखकर फूल खिलते चमन में ।
रहो संग प्रिय तुम यही चाहती है।
नहीं आरज़ू और कोई हमारी।
भले दूर “ममता” दिली वंदगी है।।
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ममता झा मेधा
डाल्टेनगंज




