साहित्य

गज़ल

डॉ संजीदा खानम'शाहीन'

सबणा खावै खा़र दुनिया में
किणने केऊं जार दुनिया में

जाऊं किणदिस आज या रब्बाह
चारुं कूंट अंधार दुनिया में ।

जात धरम रे नाम देखो तो
मच्यो हा हा कार दुनियां में।

मनरा भाव कोई नी जाणै
मतलब री मनवार दुनिया में ।

जीणसू लागो हेत’ नी छूटे
टूटे मरयां तार दुनिया में ।

बाला बेवै रोज लोहीरा
मरगंयो मिनखाचार दुनिया में ।

सबसूं मीठी बोल ‘संजीदा’
रैणो है दिन चार दुनिया में ।

डॉ संजीदा खानम’शाहीन’

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