
तुम्हारी याद अब आई बहुत है
चले आओ की तन्हाई बहुत है
हंसी आती नही है इन लबो पर
घटा मुश्किल की अब छाई बहुत है
किसी को भी नही है फिक्र मेरी
ये दुनिया लगती हर्जाई बहुत है
रकीबो से कोई जाके ये कह दे
मेरे होंटो पे सच्चाई बहुत है
जहा तुम छोड कर तन्हा गये थे
मिरी जद मे वहाँ खाई बहुत है
कभी सागर नही कहता है शाहीन
की अंदर मेरे गहराई बहुत है
डॉ संजीदा खानम’शाहीन



