साहित्य

हाथी का पजामा

डॉ संजीदा खानम शाहीन

लघुकथा

“हाथी का पजामा कहावत सार्थक सारगर्भित है “हाथी का पजामा सुनते ही हाथी की प्रतिमा, हाथी का चित्र दिमाग में सामने सजीवता लिए प्रकट हो जाता हैं । हाथी का विशाल स्वरूप
देखते ही बनता है, ,हाथी के दांत खाने
के और दिखाने के और, ऐसी और भी कहावतें है ,हाथी चले बाजार कुत्ते भौंके हजार ।आखिर प्रश्न ,हाथी का पजामा ही क्यूं, हाथी का पजामा सुनते ही बात आती मन मस्तिष्क में, विचार में अधिक ,ज्यादा ,बहुत बड़ा और विशाल स्वरूप का आकार नजर आने लगता है।
समाज में मनुष्य का अस्तित्व सर्वश्रेष्ठ है मनुष्य योनि में जन्म होना ही प्रकृति कुदरत की बहुत बड़ी देन है ।
मनुष्य का स्थान बहुत अलग विशेष बताया गया सभी धर्मों में ।
मनुष्य जीवन बहुत बड़ी चुनौती भी
है और खूबसूरती भी है।अब यह तो
मनुष्य पर आधारित है वो कैसा जीवन
जीना चाहता है । मनुष्य का जीवन सरल भी है और बहुत कठिन भी है ।
जीवन के दो पहलू जिस पर पूरा जीवन आधारित है जन्म – मरण शाश्वत सत्य है ।जीवन को जीना कैसे है दुख में या सुख में हंसते रोते हुए या बहादुरी से या ,कायरता से , बेहतर तरीके से या बेहतरीन तरीके से ।
समाज के अच्छे कर्मठ नागरिक बनकर जीना या कमजोर बुजदिल बनकर ,सब कुछ आपकी सोच प्रवृति
पर निर्भर करता है ।
मनुष्य की जितनी कम आवश्यकता होगी उतना जीवन सरल होगा । और जितनी आवश्यकता ज्यादा होगी उतनी ही जटिलताएं, संघर्ष और कठिनाइयां, बाधाएं, उत्पन्न भी होंगी।
इसी के चलते जीवन में मालिक को याद करते हुए आस्था ,आत्मशुद्धि और संपूर्ण प्रकृति की सुंदरता को
बनाए रखने के लिए मन में लालसा
पैदा होना स्वाभाविक क्रिया है।
बात उस वक्त की है जब एक गांव में हंसा नाम का व्यक्ति रहता था ।वो सोच विचार में तो बहुत सक्षम था
लेकिन जब बात आती काम की तो
दिमाग की बत्ती गुल साहब की ।
हंसा बड़े बड़े सपने देखता बहुत बड़ा विशाल घर महल जहां का राजा हंसा
और प्रजा उसकी मुट्ठी में हुक्मरानी में
हुकूमत करता हंसा ।हजारों गुलाम
काम कर रहे खिदमत में ।
तरह तरह का भोग विलास सुविधा साज सज्जा स्वादिष्ट तरह तरह के भोजन पूछिए मत क्या रॉब क्या
जुनून क्या नाज़ नखरे और सुंदर वस्त्रों को धारण किए । शिकार करने चले हंसा अपने सुंदर घोड़े पे सवार तेज तर्रार घोड़े की लगाम वाह! क्या कहने ऐसे में मुलाकात ,एक हुस्न की अफसरा नाजनीन सुंदरी से एक रियासत की राजकुमारी रियासत का नाम , कोहिनूर रियासत,
राजकन्या का नाम मृगनयनी ।
,यथा नाम तथा गुण, सुंदर मृगनयनी
पानी के झरनों में बहते पानी में खोई। हुई नहा रही ,मदहोश जवानी की आगोश में खूबसूरती की साक्षात प्रतिमा और हंसा भी, गबरू नौजवान
शिकार के दौरान जब जंगल को रुख हुआ तो पड़ी नजर मृगनयनी पर ।
मृगनयनी की सुंदरता देखकर मुग्ध
हंसा का दिल एक पल में मृगनयनी का हो गया ।
और जब हंसा मृगनयनी की तरफ बढ़ा तो मृगनयनी को लगा कोई जानवर उसकी तरफ लपक रहा उसने तुरंत तीर मार फेंका हंसा का बाजू जख्मी हुआ ।निशाना जोरदार बचने की गुंजाइश नहीं ।मृगनयनी ने देखा ये तीर तो नौजवान बहादुर बलशाली को लग गया ।वो बिना घबराए रॉब में बोली जानवर हो जो छुप कर आ रहे।
हटो यहां से और ,धड़ाम ,दोनों गिर पड़े एक दूसरे पर संभलना चाहा दोनों ने, लेकिन पत्थर और जगह भी फिसलने वाली तो नियंत्रण न रहा ।
संभल न सके।
दोनों एक दूसरे में खो गए ।एक पल के लिए दूसरे पल में होश आया की
संभल के उठे ।और हंसा ने पूछा नाम क्या है तुम्हारा है सुंदरी मृगनयनी बोली नहीं,हंसा को घूरती हुई करारा झटका देकर , धक्का मारा और दौड़ पड़ी ।मृगनयनी का आभूषण करधनी हंसा के वस्त्र में अटक गया।
आभूषण को देखकर हंसा बहुत खुश
हुआ,तभी हंसा पर ठंडा पानी लाकर उसकी मां ने हंसा पर डाला ,बोली शेख चिल्ली उठ जा देर तक सोता है और जिंदगी को खोता है ।
जीवन में पाया कुछ नहीं मेहनत कुछ नहीं ।कर्म कुछ नहीं आवश्यकता इतनी की जैसे ,हाथी का पजामा ,कुछ पाना है तो खुद को उसके काबिल बनाओ।लक्ष्य साधो और कुछ कर दिखाओ । कामयाब बनो दुनिया मुट्ठीमें करो ।चमत्कार करो दुनिया नमस्कार करेगी।मनुष्य की एक इच्छा की पूर्ति होती ओर नई इच्छाएं पनप जाती है ।मनुष्य में लालच की प्रवृति ,
पाने की इच्छा प्रबल होती है ,वो खोना नहीं चाहता सिर्फ पाना चाहता है ।और इसी के चलते वो आवश्यकताओं और सामान को इतना बड़ा लेता उसी बोझ में जिंदगी कब दब गई पता ही नहीं चलता ।और जीवन पूरा हो जाता अंतिम यात्रा की और।इसके लघुकथा से ये बात स्पष्ट हो रही। की हाथी का पजामा कितना
बड़ा होता काम का कुछ नहीं ।आवश्यकताएं और इच्छाएं कम रखो
जीवन आसन सरल करना है तो यदि ऐसा न हुआ तो हाथी का पजामा बनकर रह जाना है।

डॉ संजीदा खानम शाहीन जोधपुर राजस्थान

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