
आओ घरौंदा फिर से नव एक हम बनाएं
खु़शियों की झालरों से,मिलकर इसे सजाएं ।
कुछ ग़म नहीं जो टूटा, इक बार ये घरौंदा
टुकड़ों को जोड़कर आशादीप हम जलाएं ।
जो प्यार के हैं दुश्मन,होते रहें हमें क्या
मासूम प्रेम की आओ,पौध हम लगाएं ।
नफ़रत कभी किसी को,कुछ दे कहां है पाई
है प्रेम से ही दुनियां,ये सीख हम सिखाएं ।
है प्रेम प्रेम राधा , है प्रेम प्रेम मीरा
है प्रेम का ये जादू ,कान्हा को जो रिझाए ।
तन प्रेम में हो भीगा,मन प्रेम में हो भीगा
हो प्रेममय जहां ये,कुछ ऐसा कर दिखाएं ।
है प्रेम ये गगन का,को सींचता धरा को
है प्रेम ये धरा का, नव कोंपले उगाए
@मधु माहेश्वरी गुवाहाटी असम



