साहित्य

लघु कथा एक रामशंकर चंचल और,,,,,

डॉ रामशंकर चंचल

तुम मेरी जैसी, तभी तो मुझे तुम्हारी रूह से प्रेम हो गया और यही बात तुम अक्सर बोल जाती, याद है, जब भी तुम्हें देखता, तुम खुद मुझे देख रुक जाती थी, कहां जा रही हो, अभी, बस सर मन हुआ निकल पढ़ी
अकेली, अकेले में, जीने के लिए, आप जैसी हूं सर , मैं बोल जाता , हां
मुझे पता है, तुम मेरी जैसी हो, तभी तो मैं,,,,, हम दोनों चुप हो जाते और
खड़े खड़े ही कितनी ही बातें मन की, पीड़ा की, दुनिया के तमाम राग द्वेष और छल कपट से भरी हुईं बातों की दुःख की, वजह यही तो है कि हम आज भी छोड़ कर एक, दूसरे को, न चाहते हुए भी, विवशता वश, दूर होकर भी कितने करीब है, कि आज हर सांस एक, दूसरे के ख्याल में सुख और चिंता में व्यतीत करते हुए
ईश्वर से प्रार्थना करते हुए जी जाते है और दुनिया के तमाम सुख सुकून से कहीं ज्यादा अच्छे से,
एक दिन, याद है मुझे बहुत देर तक बात करते हुए अंत में मेरे दिल से अनायास निकल गया, चलों जीवन में ऐसा भी पल आयेगा नहीं सोचा कि एक और रामशंकर चंचल से मुलाकात होगी , तुम होगी वह रामशंकर चंचल, तुम्हें पता था कि
तुम्हारे लिए ही कह रहा हूं यह बात
पर जैसे ही मैंने कहां , तुम हो वह रामशंकर चंचल, तुम कुछ देर चुप रही , जैसे तुम्हारे मन की बात कर दी, फिर धीरे से बोली, नहीं सर, कहां आप और कहां में, मुझमें ऐसा क्या है सर , कि आपकी बराबरी करूं , यह तुम्हारा मेरे प्रति अथाह प्रेम प्यार आदर था जो अक्सर या हर बार महसूस करता था, हां कभी कभी हम भूल जाते सब कुछ और
किसी अच्छे दोस्त की तरह बात करते थे, आदर और सम्मान मैं भी तुम्हें खूब देता , यह मेरी आत्मा से निकल जाता था क्योंकि केवल तुम ही थी इस अथाह अपने होने का राग अलापती दुनिया में , अपनापन लिए जिसने मुझे नई जिंदगी दी और मैं मरने से बच कर एक सार्थक जीवन जीने लगा जो आज भी हर समय तुम्हें अपने पास साथ महसूस करते हुए जी रहा हूं
तुमने भी नहीं सोचा न मैने कभी
पर उस ईश्वर का सचमुच यह अद्भुत उपहार था हम दोनों के लिए एक ऊर्जा ,ताकत भी और है आज भी कि हम सदा ही इस दुनिया के तमाम बैराग अलाप से कोसों दूर हो कर भी कितने करीब है कि हमें हमारी मित्रता का पावन पवित्र रिश्ता की अद्भुत सुखद यादें जिन्दा रखें है और सतत् सक्रिय रूप से
कमाल का होता हैं ईश्वरीय रूह प्रेम आज जीवन में पहली बार महसूस कर रहा हूं, ईश्वर कृपा हो और वह चाहे तो, सब कुछ सब को नसीब कर देता है , कहते है कि जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों
यूं ही नहीं कहां जाता हूं आत्मा से निकल आया होता हैं हर शब्द सत्य लिए और यह अद्भुत सत्य आज हम दोनों के लिए सचमुच वंदनीय और वरदान हैं कि दो जिस्म एक आत्मा
इसलिए छोड़ कर भी हम हमारी आत्मा से एक दूसरे को महसूस करते हुए जी जीते हैं सुख सुकून से
जब भी मैं बहुत परेशान होता , तुम्हारी तरह या तुम मेरी तरह निकल जाते है एकांत में एक दूसरे से मिलने
और में करता हूं एक और रामशंकर चंचल से मुलाकात, खुलकर बात और सुखद अहसास करता हुआ लग जाता हूं सालों की तपस्या साधना में, प्रणाम रूह सत् सत् प्रणाम रूह

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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