साहित्य

माँ_एक_एहसास

शशि कांत श्रीवास्तव

माँ….
माँ ….,तुम क्यों चली गई !
इस तरह से रूठ कर मुझसे,
दूर… बहुत दूर… अनंत में ,
मुझे जब भी तेरी जरूरत होती है ,
तेरे ममता भरे प्यार के छाँव की,
तब…..
उस पल में…मैं….,
तेरी तस्वीर को देखा करता हूँ ,
अपलक….एकटक,
उस एहसास को पाने के लिए !
क्योंकि….,
मुझे आज भी जरूरत है -तुम्हारे,
उस प्यार भरे अहसास की,
और ,जरूरत है उस सहारे की,
जो तेरे मजबूत हाथों की थी माँ,
बेशक तुम आज मेरे साथ नहीं हो,
पर तुम्हारे होने का एहसास
आज भी मेरे साथ में है -माँ,
आज भी मेरे साथ में है -माँ ||

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब

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