साहित्य

माँ तू ही मेरी परछाईं

शिवानी दीक्षित 'महक'

एक लड़की बड़ी प्यारी
हाँ, नाम था उसका दुलारी।
भोली-भाली, चंचल थी,
बस सुनती अपने मन की थी।

विकार ने जब पकड़ लिया
अपने चंगुल में जकड़ लिया।
नेत्र रंग भी पीला था,
स्वास्थ्य बड़ा ही ढीला था।

लगा बचपन पर जब ग्रहण
न दिखे आस की कोई किरण।
खेल-कूद भी बंद हुआ,
बस मौन ने उसको जा छुआ।

माँ उसकी हैरान बड़ी
यह कैसी विपत्ति आन पड़ी?
“दूँ तुझको प्यारी झप्पी,
तोड़ लाड़ली अपनी चुप्पी।”

दवा का अमुक असर न था
दिल में अंदेशा पर हाँ था।
जब नंदिनी मचलती थी,
उस माँ की साँसे थमती थी।

छोड़-छाड़ के सब कुछ वह
माता के वो मंदिर पहुँची।
“तेरे कर में ही सब है,
तूने माता, अब क्या सोची?”

खाना-पीना छोड़ दिया,
प्रसू का दिल भी पसीज गया।
देख उसकी अटूट भक्ति,
उस बेटी को जा मिली शक्ति।

माँ की दुआ रंग लाई,
कुनबे में खुशियाँ फिर छाईं।
दवा‌ डरी, दुआ ने करा,
माँ की ममता ने असर करा।

माँ-बेटी का मिलन हुआ,
तब फूट-फूट कर रुदन हुआ।
” तेरी अर्ज़ रंग लाई,
माँ, तू ही मेरी परछाईं|”

मेरी कलम से……..
शिवानी दीक्षित ‘महक’ चंदोसी, संभल, उ०प्र०
मो०-7302114958

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