आलेख

मानवीय मूल्यों-संवेदनाओं में वृद्धि करें व नैतिक क्षरण-ह्रास रोकें

विनय कुमार श्रीवास्तव

संसार में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति समाज की एक मूल्यवान इकाई है।इन्हीं विभिन्न इकाइयों से हमारा परिवार बना है। विभिन्न परिवारों से मिल कर ही हमारा समाज यह बना है। विभिन्न समाजों और संस्थाओं से हमारा देश,प्रदेश और राष्ट्र बना है। मेरे दृष्टिकोण में जैसे परिवार एक इकाई व छोटी संस्था है,उसी तरह समाज भी एक बड़ी इकाई और बड़ी संस्था है। हरेक इकाई संस्था,संगठन और उसके सदस्यों का अपना-अपना मानक,संस्कार,आदर्श एवं मूल्य होता है।आज के वर्तमान परिवेश में देखा जाय तो हमारे मूल्यों में ह्रास हो रहा है,उसका बड़ी तेजी के साथ क्षरण हो रहा है। इंसानियत और उसकी मानवीय संवेदनाओं में दिन प्रतिदिन इतनी गिरावट आती जा रही है कि हम एक अच्छे स्वस्थ सोच के एवं स्वस्थ समाज के तो प्राणी रह ही नहीं गए हैं। हम एक मतलब परस्त,गैर जिम्मेदार, असंवेदनशील,लालची प्रवृत्ति वाले,इंसानियत से कोसों दूर रहने वाले असामाजिक प्राणी बनते जा रहे हैं।

हमारे अंतर्मन में उत्पन्न इसी प्रकार का केवल व्यक्तिगत लाभ के विचारों,कृत्यों,आचरण का असर न सिर्फ हमारे परिवार के सदस्यों की अच्छी सोच व व्यक्तित्व निर्माण को लगातार प्रभावित कर रहा है,बल्कि सम्पूर्ण समाज,देश व प्रदेश पर भी अपना कुप्रभाव डाल रहा है। जिससे समाज में मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं में गहरा परिवर्तन हो रहा है। इसका बहुत बुरा असर न सिर्फ हमारे आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाला है बल्कि भविष्य में समाज को और भी बुरी स्थिति में उसे ढकेलने वाला बनता जा रहा है।हमारे मूल्य ही हमारे आदर्श या मानक होते हैं जो किसी भी संस्था समाज या संगठन या फिर व्यक्ति के लिए सदैव एक दिशा निर्देश के रूप में कार्य करते चले आ रहे हैं। मूल्यों के निर्माण में परिवार और समाज का हमेशा से ही बड़ा हाथ रहा है। मूल्य ही व्यक्ति के व्यवहार या नैतिक आचार संहिता का एक बड़ा महत्वपूर्ण घटक है। यूँ तो मूल्यों की परिभाषा एवं व्याख्या अलग-अलग विभिन्न क्षेत्रों में अपने- अपने अनुसार लोगों द्वारा होती है। यहाँ मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अर्थ व्यवस्था में जिसकी जितनी माँग है वहाँ उसका उतना मूल्य है। नीतिशास्त्र में देखें तो जो अनुचित है वह मूल्यहीन है। इसी तरह से देखें तो सौन्दर्यशास्त्र में जो सुन्दर है उपयोगी है वही तो वास्तव में मूल्यवान है।

उदाहरण स्वरूप में देखें और समझें कि वास्तव में यही आत्म शान्ति,न्याय,सहिष्णुता,आनंद,अनुशासन,मूल्य,ईमानदारी एवं
समयवद्धता,बड़ों का सम्मान करना,अपने से छोटों को प्यार व स्नेह करना,जीवों पर दया करना,पीड़ित-लाचार की मदद करना,बीमार की सेवा करना,बुजुर्गों की देख-भाल सेवा करना, स्त्रियों का सम्मान करना,माता-पिता का कहना मानना इत्यादि हमारे प्रसिद्ध मानवीय मूल्य हैं। वास्तविक रूप में देखें तो जीवन में मूल्यों का अर्थ सब से गहरे और उच्च आदर्शो से ही होता है। समाज की विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से विकसित ये बड़े मूल्य हमारे दिलों,दिमाग और मन में गहराई से बैठे होते हैं। इन्हीं कुछ आदर्शो या मानकों को हम मूल्य कहते हैं। ये विशेष मूल्य हमारे सामाजिक जीवन को संभव व श्रेष्ठ बनाने के लिए अति आवश्यक हैं,जिसका आज तेजी से क्षरण हो रहा है एवं हमारी मानवीय संवेदनाएँ हमारे दिलों से धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं।

ये आज हर दृष्टि से व्यक्ति,परिवार,समाज,देश एवं प्रदेश के लिए घातक तो है ही विकास में भी विशेष बाधक है। मूल्य ही व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करते हैं तथा नागरिकों का चरित्र ही हमारे राष्ट्र के चरित्र का निर्माण करता है। हमारा यही नैतिक मूल्य ही हमारे,परिवार,समाज और राष्ट्र के विकास तथा उन्नति में सहायक सिद्ध होता है।जन्म के समय बच्चा न तो नैतिक होता है और न ही वो अनैतिक होता है। बच्चे की प्रथम पाठशाला तो माता-पिता और परिवार होता है। किसी बच्चे का नैतिक या अनैतिक होना प्रथमतः उसके परवरिश के तौर तरीकों एवं पारिवारिक परिवेश पर निर्भर करता है। परिवार कब कैसे कितना एवं किस ? प्रकार के मूल्यों को बच्चे में स्थापित करना या उसको देना चाहता है,यह तो माता-पिता और परिवार पर ही निर्भर करता है। जैसा जिस परिवार का वातावरण होता है वैसा ही बच्चे के ऊपर उसका असर पड़ता है। वैसे ही मूल्यों को बच्चा ग्रहण करता है। छः वर्ष तक की आयु ही तो उम्र का एक ऐसा पड़ाव होता है जब कोई भी बच्चा दूसरों के आचरण से सबसे अधिक सीखता और प्रभावित होता है। इसीलिए हमारे प्राथमिक स्तर पर सर्वाधिक मूल्य इसी उम्र में निर्धारित होते हैं।
यद्यपि कि छः वर्ष की आयु के बाद भी मूल्यों का विकास तो होता है किन्तु उसके प्रभाव का स्तर धीरे-धीरे कम होने लग जाता है। इसलिए अपने बच्चों में बचपन के दिनों में ही उनके अंदर अपने आदर्श आचरण एवं मूल्यों को भरने का प्रयास करें ताकि उसको अच्छे-बुरे,सही-गलत आचरण का उसको सही ज्ञान हो सके एवं ये ज्ञान,सामाजिक रीति-रिवाज,परंपरा,धर्म,राष्ट्रीयता,राष्ट्रप्रेम,ममता,
दया,करुणा,पर्यावरण प्रेम,आपसी स्नेह,प्रेम,साफ,सफाई,स्वच्छता
,अनुशासन आदि के व्यवहारिक एवं चारित्रिक ज्ञान और मूल्यों का पर्याप्त बोध भी ग्रहणीय हो सके।
यही प्रारंभिक मूल्य निर्धारण ही भविष्य में बालक-बालिका के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक तो सिद्ध होंगे ही उन्हें आगे चल कर जीवन में एक सफल इंसान बनाएंगे। देश का एक आदर्श नागरिक बनाएंगे। इनके मानकों,विचारों,आदर्शो,मूल्यों में कोई ह्रास कभी नहीं होगा। इनकी इंसानियत और मानवीय संवेदनाओं का क्षरण कभी नहीं होगा। इनके अंदर यह समाजोपयोगी गुण जीवनपर्यन्त विद्यमान रहेगा।

अपने बच्चों को शिक्षण,प्रशिक्षण,दंड,पुरस्कार,निंदा,तारीफ आदि कुछ ऐसे उपकरणों से जिनसे कुछ उच्च आदर्श,मानक या मूल्य विकसित किये जा सकते हैं जिसका प्रयोग उपयोग कर उन्हें और प्रभावी बनाया जा सकता है। परिवार एकल है या संयुक्त इसका भी बच्चों के ऊपर असर पड़ता है क्योंकि ऐसा संभव हो सकता है कि एकल परिवार होने से उनके ऊपर वैयक्तिक मूल्यों का प्रभाव पड़े और एक संयुक्त परिवार होने से साथ-साथ रहने के मूल्यों का और सुंदर प्रभाव प्राप्त हो। इसी तरह कभी परिवार का शैक्षणिक और आर्थिक स्तर भी मूल्यों की पृष्ठभूमि तय करने में सहायक होते हैं। मूल्यों के निर्धारण एवं निर्माण में परिवार के बाद समाज की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सामाजिक परिवेश में रह कर व्यक्ति के नैतिक मूल्यों में परिपक्वता भी आती है। किसी भी बच्चे के अंदर आरम्भ में मूल्यों का जितना भी विकास हो जाता है उसमें और वृद्धि तब होती है जब वह परिवार से निकल कर स्कूल कालेज जाता है। वैसे तो समाज की वास्तविक भूमिका विद्यालय जाने के पश्चात ही प्रारम्भ होती है,उसके पहले तो समाज और घर परिवार मूल्य विकास में बराबर की भागीदारी निभाते हैं। हमारे बच्चे के अपने स्कूल में अन्य अच्छे बच्चों से ज्यों-ज्यों ही उसका संपर्क बढ़ता है उसके मूल्यों का विकास भी उत्तरोत्तर विकसित होता जाता है और बढ़ता रहता है। स्कूल में पठन-पाठन के लिए अतिरिक्त पाठ्य सहगामी क्रियाकलापों,खेलकूद,सांस्कृतिक कार्यक्रमों और सामाजिक कार्यों,सामाजिक समूहों में वार्तालाप, सह-शिक्षा,विद्यालय का वातावरण,समाज के उच्च नैतिक मूल्य, मापदंड,सामाजिक गतिशीलता और सामाजिक परिवर्तन जैसे विचारों का प्रभाव भी व्यक्तित्व के विकास,उसके निर्माण और मूल्यों के संवर्धन में बहुत अधिक प्रभावी रूप से पड़ता है।
विभिन्न धर्मों,जातियों और क्षेत्रों के लोगों के साथ संपर्क से उनमें धैर्य,सहिष्णुता जैसे मूल्यों को विकसित करना आसान होता है। सामाजिक जीवन में हो रहे तीब्र परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए तथा नवीन एवं प्राचीन के मध्य यह स्वस्थ सम्बन्ध बनाने में हमारे आदर्श या नैतिक मूल्य एक मजबूत सेतु का कार्य करते हैं।इतने सुंदर और सुसंस्कारित मानकों या आदर्शो अर्थात मूल्यों के होते हुए भी आज हम कहाँ और किस गर्त में जा रहे हैं?। हमारी इंसानियत खोती जा रही है। हमारी संवेदनाएँ समाप्त होती जा रही हैं। हमारे नैतिक मूल्यों का पतन होता जा रहा है।

आज हम मानव होते हुए अमानवीय व्यवहार करने लगे हैं। हमारा धर्म,कर्म,संस्कृति,सभ्यता,संस्कार,मानवता,संवेदना,आदर्श,मूल्य
सब का तो ह्रास होता जा रहा है।आइये हम सब संकल्प लें कि हम अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा करेंगे। अपने आदर्शो और समाज के मापदंडों पर खरा उतरेंगें। अपनी इंसानियत और संवेदना के सभी मूल्यों को संरक्षित करेंगे। हम स्वयं सभी के साथ वैसा ही आचरण,व्यवहार,मानवतापूर्ण कार्य सदैव करेंगे,जिससे किसी को भी दुःख,कष्ट न पहुंचे और किसी को कोई नुकसान न हो।

ज्ञान विभूषण डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
सेवानिवृत्त वरिष्ठ प्रवक्ता-पी.बी.कालेज,प्रतापगढ़,उ.प्र.(शिक्षक,कवि,लेखक,साहित्यकार समीक्षक एवं समाजसेवी)

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