
लरचे डारि लता कतहूँ,अरु फल कुंच कतौ,
मोतियन सन झलकें,
छिछनाई गिरे कोइना कतहूँ,महुआ तरू नयन रिझावहिं पुलकें।
उपवन माहि बहे पुरवाई,हिलें तरुपात ज्यूँ नारि की अलकें,
ऋतु बसन्त छिटकावत रसवन्ती,मदमातल
रस में तरुवर महके।
पल्लव में भकजोन्हिय लिपटे,अनल जोतसन
भकभक भभके,
आकुलदेहिया ले फिरै विरहनी,मदरसकंचुकि, किरके दहके।
कस्तूरी चाहन जसहिरनी भटके,वन उपवन हरठौरुक अटके।
कजरारे नयन ठगे से रहें,ठहरें जस काम कमान सी पलकें।
कँगना कलाई रहें कनके,गोड़हरा,कडा़ छडा़ संग ठनकें,
नकबेसर रहिरहि ओंठवा चूमे,झमझम झमके झुमके झूमें।
टड्डा,बजुबंद,मंग टीका चमके,हियहुमेल हँसि हँसुली फुदकें ,
झरिझरि फूलि महावरि चूमे,रसि उड़ेरि मधुर रस छिरकें।
कामिनी शयनारि क आस करे,कटिबंध कसे कुहकुन कुलकें, विरहिन मन पीर कहे कइसे,अँचरा मुखिडारि, भरिअँसुवन सिसकें।
बैरिन भई निंदिया बिछिया ताके,कब अइहँ पियवा हियवा हुटकें,
झुंझके झुंझनाई झुझुक मन झिड़के,पुनिपाँति मिले विहँसें थिरकें।
✍️ चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा “अकिंचन”
चलभाष-9305988252
कुंच=महुआ बीज,कोइना=महुआ




