साहित्य

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर जी की तीन रचनाएं

एक दीया जलाएं

राम राज्य कि अलख जगाए
चलो आज एक दीया जलाएं,
भय भ्रम अंधकार मिटाए
राम राज्य की अलख जगाएं
चलो आज एक दिया जलाए!!

राम राज्य कि अलख जगाए
चलो आज एक दिया जलाएं
ज्ञान कि ज्योति,को मन बुद्धि
का प्रकाश,बनाए!
चलो आज एक दीया जलाएं,
राम राज्य की अलख जगाएं।!

राम राज्य कि अलख जगाए
चलो आज एक दिया जलाए
राग,द्वेष, घृणा त्यागें, बैर भाव ,
मिटाए!
चलो आज एक दीया जलाएं,
राम राज्य की अलख जगाएं।!

राम राज्य कि अलख जगाए
दुःख, दरिद्रता न आवे पास,
सम भाव का युग समाज बनाए!
चलो आज एक दीया जलाएं,
राम राज्य की अलख जगाएं।!

राम राज्य कि अलख जगाए
चलो आज एक दिया जलाएं!!
शांति, वैभव कि लक्ष्मी
वंदन,ऋद्धि-सिद्धि का
गणपति आराधन,जीवन
का धन-धान्य,जगाए!
चलो आज एक दीया जलाएं,
राम राज्य की अलख जगाएं।!

राम राज्य कि अलख जगाए
चलो आज एक दिया जलाए
संस्कार का दीपक,
मर्यादा, मूल्यों की बाती,
भावों का घृत, तेल, प्रेम
परस्पर की लौ जलाएं!

चलो आज एक दीया जलाएं,
राम राज्य की अलख जगाएं।!

राम राज्य कि अलख जगाए
चलो आज एक दिया जलाए!!
मानव मूल्यों का उत्सव,
सत्य जीत, असत्य हार,का
जीवन पथ का उजियार बनाए!
चलो एक दीया जलाएं,
राम राज्य की अलख जगाएं।

2

प्यार का दीपक

दीपक प्यार का एक जलाइए,
अंधेरा मिटाइए फरेब झूठ
जंजाल का अंधकार है बहुत
दीपक प्यार का एक जलाइए!!

जल गया गर एक दिया भी
दुनिया की इन्जार का,
जानिए रोशन हुआ जहां
गुलजार साअंधेरों मे उजाले
का लौ बनते जाइए।!!

कदम कदम पर धोखे हैं
मतलब कि दुनिया है,
दो आंख दिया है खुदा ने
फिर भी लगते अंधे हैं
अंधों की दुनिया का
अंधकार मिटाइए!!

एक चिराग की रौशनी से
जहां में उजियार का शुभ
शुभारंभ बनते जाइए।!

जालिम दुनिया में मुश्किलें
बहुत,जलते दीपक को
गैरत की दुनिया तूफानों से बचाइए।!

वक्त ऐसा भी है आता
जलता दीपक बुझने को
उद्धत हो जाता,कभी
दीपक के जलने की
उम्मीद दम तोड़ती हौसले
हिम्मत का फानूस बनते जाइए।!

तेरे जलते दीपक तले
भी है अंधेरा,रोशन कर तू
जहां ऐसा रहे न कहीं अंधेरा।

3

अंतर्मन अंधकार मिटाए

अंतर्मन का अंधकार
मीटाऐ राग द्वेष दम्भ
भय प्रपंच का नर्क
नरकासूर असुर मिटाए!!

मिट गया जो अंतर्मन का
अंधकार प्रश्नफुटित होगा
अंतर्मन उजियार अंतर्मन
प्रकाश जगाए!!

चहु ऒर उजियार
अंधकार का विनाश
अर्जुन कि दृष्टि एकाघ्र
संजय कि दूर दृष्टि
अनिवार्य दृष्टि का दीप
जलाए!!

गांधारी कि अंतर्मन
दृष्टि अपरिहार्य सूर
सत्य कि भक्ति शक्ति कि
दृष्टि युग परम् प्रकाश!!

दीप से दीप जलाए
ज्योति से ज्योति जलाए
मानवता मूल्यों कि दीप
श्रृंखला बनाए!!

युग मे ना रहे अंधेरा
मीट जाए भेद भाव ऊंच
नीच जाती पांति निर्धन
धनवान का सम भाव कि
ज्योति जलाएं!!

दीपक धर्म मर्म कर्म का
सनमत सम्मत युग काल
समय मे जग मग दीप
जलाए!!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!

 

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