साहित्य

नर्मदा का आशीष

डॉ अपराजिता शर्मा

विजय ने कई दिनों बाद अपने गृह नगर जबलपुर में कदम रखा ।सच में नौकरी में जाते ही उसका घर आना साल में एक बार ही हो पाता ।सारा साल वह रास्ता देखता कब घर जाए कब घाट पर नर्मदा मैया की आरती देखें, सांझ का ढलता सूरज देखें, घंटो नाव को इस पार से उस पार और उस पार से इस बार आते देखे ।
उसका समय कब बीत जाता सांझ का,उस को आभास ही नहीं होता। आरती के बाद जब चारों तरफ लाइट की रोशनी जगमगाने लगती, तब बड़े ही बेमन से कदम उठाकर वह घर की ओर जाता ।ऐसा नहीं था कि घर उसे पसंद नहीं था, पर उसका दिल बसता था नर्मदा मैया में ।कलकल बहती,बहुत चौड़ा पाट और नदी के बीच में बना नर्मदा मैया का मंदिर। आज भी शाम के झुटपुटे में गलियों से होते हुए वह अपने घर की ओर बढ़ा जा रहा था ।अचानक एक घर से जोर-जोर से पीटने और किसी महिला की रोने की आवाज में उसके कदम थाम लिया। फौजी जो ठहरा किसी पर अन्याय होते देख नहीं सकता था। 2 मिनट तक कुछ सोचते हुए खड़ा रहा। फिर दृढ़ निश्चय करके उसने दरवाजे पर लात जमा दी दरवाजा पुराना था ।जोर का धक्का सह नहीं पाया सांकल टूट गई ।अंदर देखता है एक लड़की सफेद वस्त्र पहने और एक प्रौढ़ महिला शायद उसकी मां होगी चप्पल से उसको पीटे जा रही थी, और पूछती जा रही थी। बता क्या है वहां? क्यों जाती है घंटों?वहां कौन रहता है वहां?इतने सारे प्रश्न बौछार की तरह, और वह सहमी खड़ी रोती जा रही थी,यह बोलते बोलते,मां वहां कोई नहीं, मैं किसी को नहीं जानती,और ना ही मैं किसी से मिलने जाती हूं। मैं तो बस सूरज को ढ़लते देखने नाव चलते देखने और आरती लेने जाती हूं। उसी नदी के किनारे बैठकर अपने सर्वस्व को याद करती हूं ।जिनको आप लोग एक दिन लोटे में भरकर नर्मदा मैया को समर्पित कर आए थे। मैं तो बस उनको याद करती हूं ।और नर्मदा मैया से रोज मांगती हूं, की हे मां तेरी गोदी में उनको सुकून से रखना ।जिसका हाथ थाम कर मैं सारी दुनिया छोड़ कर यहां चली आई थी। विजय अब तक सारा माजरा समझ चुका था। उसने आगे बढ़ कर उस प्रौढ़ महिला का हाथ पकड़ लिया,गरज कर बोला -खबरदार जो इस अबला पर अब आपने एक बार भी हाथ उठाया तो ।अरे तू कौन है? कहां से और कैसे घुस आया मेरे घर में?ओ मोहल्ले वालों बचाओ बचाओ हमारे घर एक अजनबी घुस आया। अब तक तो दो चार पड़ोसी तमाशा देखने इकठ्ठा हो चुके थे। पर विजय की दमदार पर्सनालिटी देखकर किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी आगे बढ़कर उसको रोकने की एक पड़ोसी ने बहुत हिम्मत करके बताया भैया यह लड़की इसकी बहू है इस के बेटे ने अपने पसंद से शादी की थी ।शुरू में सब अच्छा चला ।पर जैसे ही यह कोरोना आया,जो पहले इसकी मां को हुआ। क्योंकि यह अस्पताल में आया बाई है ना,जैसे तैसे उसकी जान बचाई बेटे ने अपनी सारी जमा पूंजी खर्च करके ।इसके लिए दवाई लाना ले जाना डॉक्टर को इस को दिखाने समय-समय पर ले जाना। इन सब के चक्कर में वह खुद भी कोरोनाग्रस्त हो गया ।अब तक सारी जमा पूंजी खर्च हो ही चुकी थी। बस बहू के थोड़े से गहने बचे थे और यह एक छोटा सा मकान। तय हुआ,यह पहले गहने बेचकर उसका इलाज करवाएंगे ।और जरूरत हुई तो घर को भी गिरवी रख देंगे ।पर नियति को कुछ और ही मंजूर था। चार-पांच दिन बाद सबको ऐसा लगा कि वह ठीक हो गया ।डॉक्टर भी बोले अब घर ले जा सकते हैं। सब खुश हो गए बस एक रात की तो बात है ।सुबह अस्पताल से छुट्टी हो जाएगी ।फिर महीना भर घर पर आराम और फिर काम पर जा सकता है। पर रात के 2:00 बजे उसकी तबीयत बिगड़ने शुरू हो गई। घबराहट पसीना बेचैनी और बीपी शूट होने लगा होते होते इसके पहले कोई कुछ समझ पाता उसने प्राण त्याग दिया। सुबह जब यह सास बहू उसको घर लाने पहुंची तो जिंदा के बजाए मुर्दा देख कर आई ।अब सास को यह बहम हो गया की बहू बेटे को खा गई ।अभी साल भी पूरा नहीं हुआ था शादी का। और यह बेचारी जो किसी दूसरे शहर से है यहां किसी को नहीं जानती पहचानती बस पति का हाथ थाम कर चली आई थी ।बहुत पूछने पर भी अपने मायके का कोई पता नहीं देती ।कहती है मेरे घर वालों के लिए मैं मर गई। सब कुछ त्याग कर आई थी ।अब वापस नहीं जाऊंगी ।और यह बुढ़िया है कि इसको जीने नहीं देती ।उसके पति की जगह उसे क्लर्क की नौकरी मिल गई है ।वह चाहे तो कहीं भी जा सकती है ।पर इस बूढ़ी को किसके भरोसे छोड़े सोच कर रह जाती है ।अब यह दोनों हि एक दूसरे का सहारा है। विजय सब सुनता रहा शांति से, और उस प्रौढ़ महिला को समझाइश दिया और बोला -चल मां आज से, मैं तेरा बेटा, रोज आऊंगा ।जब तक मेरी छुट्टी है पर तुझे एक वचन देना होगा, कि आज के बाद इस लड़की के ऊपर क्या नाम है—? आपका अब उसने पूछा -जी मैं जीत हूं ।अच्छा,तो अब इसके ऊपर तू कभी हाथ नहीं उठाएगी। तमाशबीन अब छट गये रात ज्यादा हो गई थी ।जीत से उसका मोबाइल नंबर और घर का पोस्टल एड्रेस लेकर विजय घर आ गया। मां पिताजी दोनों चिंता में भरे गेट पर ही खड़े मिल गए कहां रह गया था तू??? कुछ नहीं मां बस ऐसे ही बोलकर उसने टाल दिया पता नहीं आज तुरंत सच बताने की उसकी हिम्मत नहीं हुई ।छोटा शहर जिस पर आज तक वह किसी के पचड़े में नहीं पड़ा था। इसलिए चुप रह गया। बात आई गई हो गई ।दूसरे दिन फिर यथा समय पर वह वापस नर्मदा के किनारे पहुंच गया। पर आज उसकी नजरें किसी को ढूंढ रही थी। जिसे कल की गहमागहमी में उसने ठीक से उसका चेहरा भी नहीं देखा था आज पहचानेगा कैसे????यह सोच ही रहा था,कि पीछे से आती पदचाप ने उसका ध्यान खींचा ।यह जीत थी सफेद साड़ी में बिना श्रृंगार, सूनी आंखें, पर चेहरे पर गजब का लावण्य ।एक अनोखा तेज । इस सादगी में भी उसका चेहरा कुछ अलग सी अनोखी आभा से चमक रहा था। ध्यान से देखा,काफी तीखे नाक नक्श सुंदर तराशी देवी प्रतिमा की तरह एकटक देखता रह गया। धीरे से पास आकर जीत ने उसके पैर छू लिया। इस अप्रत्याशित सम्मान के लिए वह तैयार नहीं था। हड़बड़ा कर उठा और उसका कंधा पकड़कर बोला यह क्या कर रही हैं आप?यह पब्लिक प्लेस है, सबकी नजरें हम पर हैं। संभालिए अपने आप को। दो बूंद आंसू के उसके हथेली पर टपक पड़े, संभल कर दोनों बैठ गए। इतने में आरती शुरू हो गई और वे चुपचाप मंदिर आरती लेने चले गए। प्रसाद लेने के बाद मंदिर से बाहर आते समय विजय ने एक खाली बेंच की तरफ इशारा किया चलिए वहां बैठते हैं ।अब तक जीत सम्भल चुकी थी।काफी दूरी रख कर दोनों बैठ गए ।थोड़ी देर की चुप्पी के बाद उसने जीत से पूछना शुरू किया ।आप अपना पिछला सारा जीवन खुलकर बताइए। मुझे,पता नहीं जीत में भी कहां से हिम्मत और आत्मविश्वास आया। एक साथ में ही वह सब कह गई कि वह कब और कहां कैसे अपने पति से मिली थी और कैसे उसका हाथ थाम कर यहां चली आई थी ।इसके आगे की पूरी कहानी विजय कल सुन ही चुका था ।उसका हाथ थाम कर बोला –जीत में फौजी हूं देश के लिए सर्वस्व कुर्बान करने वाला ।ठिकाना तो मेरी जिंदगी का भी नहीं है। हां,पर कल से आज तक तुम्हारे बारे में सोचते हुए इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि अब तुम जिंदगी में अकेली नहीं हो,हर कदम पर जब तक मेरी सांस है हम साथ हैं ।जीत ने धीरे से सहमति में सिर हिलाकर उसके कंधे पर सिर टिका लिया। बोला कल 11:00 बजे तैयार रहना मैं आऊंगा तुम्हें लेने ।फिर दोनों वापस अपने घर चले गए। और नर्मदा जी का किनारा उनका गवाह बन गया ।घर पर रात में जब विजय ने बताया ।भारी कोहराम मचा माता-पिता ने जात पात समाज की ऊंच नीच और पता नहीं कितनी धमकियों से विजय को रोकने की कोशिश की,पर विजय पर रत्ती भर भी असर नहीं हुआ ।बोला कल 11:00 बजे बोल आया हूं जीत को तैयार रहने के लिए इधर जीत को दूसरे दिन ऑफिस ना जाते देखकर उसकी सास का माथा ठनका शांति से घर के काम निपटा टी जिसका चेहरा आज उसे कुछ अलग सा लगा बोली कलमुही इरादा क्या है जीत शांत रही कुछ नहीं बोली घड़ी देखी उसमें 10:45 बज चुके थे वह तैयार होने चली गई इधर 11:00 बजने में 5 मिनट बाकी थे विजय उनके घर हाजिर हो गया उसकी सास को बोला आज से जीत मेरी है हमेशा हमेशा के लिए इसको लेकर जा रहा हूं आज मेरी छुट्टी का आखरी दिन है ।पर हां तुमको मां बोला हूं,अकेला छोड़कर नहीं जा रहा हूं। तुम्हारी पूरी व्यवस्था कर दी है ।जीत की सास हक्की बक्की रह गई मानों सांप सूंघ गया हो। जीत में आगे बढ़कर पूरे आत्मविश्वास के साथ विजय का हाथ थाम लिया ।दोनों घर से बाहर निकल आए,और सीधे ग्वारीघाट स्थित नर्मदा जी के मंदिर में पहुंचे वहां विजय के दोस्त सारी तैयारी के साथ पहले से ही मौजूद थे ।जिस नर्मदा नदी के किनारे जीत ने अपना सर्वस्व गवांया था। आज उसी नर्मदा माँ ने अपने किनारे उसे सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद दिया।

डॉ अपराजिता शर्मा
रायपुर

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