साहित्य

नव प्रयास

सपनाअग्रवाल

नव प्रयास का दीप जले तो,
अंधकार है भागता
उठे कदम छुए नभ को,
अपनी मंजिल को जानता
नित स्वार्थ को भेद मनुज,
नूतन सृजन करता है।
पथ प्रदर्शक बन ईश्वर फिर
जीवन आलोकित करता है।
विज्ञान सिर्फ साधन है
जीवन का आधार नहीं
आश्रित रहा जो इस पर
ये धरा का शृंगार नहीं
नक्कार इसकी सत्ता को,
जो तूने प्रतिकार किया
सोच कैसे फले फूलेगा?
जो इसने तुझे नक्कार दिया।

प्रेम पथिक बन बस तू
इसकी राहों में चलते जाना।
मधुबन सी होगी तेरी राहे
तू खुशियो के दीप जलाना।

#सपनाअग्रवाल मुजफ्फरनगर

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