साहित्य

पगडंडियों पर पड़ गई नजर विकास कीऔ

संजय प्रधान

पगडंडियों पर पड़ गई नजर विकास की।

विकास का द्वंद हुआ घायल पगडंडी का मन

पगडंडियों पर पड़ गई नजर विकास की,
आ जाएगी सड़क पगडंडियों को चिंता इस बात की,
अस्तित्व समाप्त हो जाएगा अपना सारा,
खेती को नहीं खबर इस बात की‌।

मैं तो खो जाऊंगी पत्थर बजरी तारकोल तले,
नहीं चल पायेगा आदमी जानवर पैदल,
मचेगा हल्के भारी वाहनों तेज हार्न का शोर,
सुन गईया,बकरी छोटे पुश पंछी हो जायेगें घायल।

मैं तो ठहरी कुछ पल कुछ दिन की मेहमान
हरियाली फसलों तुम भी जरा ध्यान से सुनना,
खेतों जरा तुम भी सावधान रहना,
जब भी कभी हंसना मुस्कुराना
जरा मुझे भी याद कर लेना।

अब नहीं जा पायेगा किसान बाजार,
खेत में आ जायेगा खुद ही बाजार,
या हिस्से बंटवारे हो जायेंगें खेतों जमीनों के,
बन जायेंगें बहुमंजिला फ्लैट आ जायेंगे बड़े दुकानदार।
संजय प्रधान,
देहरादून।

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