साहित्य

पूर्णिका

नवयुग

गोवर्धनसिंह फ़ौदार ‘सच्चिदानन्द’

पल – पल रिश्ते बदल रहे हैं।।
अपने अपनों को छल रहे हैं।।

दौर भला यह कैसा आ गया।
दुश्मन घर पर पल रहे हैं।।

हाँ-हाँ पल में ना हो रहे।
कैसे जिह्वे फ़िसल रहे हैं।।

जीवन जिनके नाम किया था।
चढ़कर छाती चल रहे हैं।।

सत्य छुपाए चेहरा चल रहा।
दोषी खुश हो मचल रहे हैं।।

स्थिति सुधरे हुई थी कोशिश।
सबही इसमें विफल रहे हैं।।

‘सच्चिदानन्द’ मत घबराना।
लाखों दिल यूँ जल रहे हैं।।

(गोवर्धनसिंह फ़ौदार ‘सच्चिदानन्द’)
पता :मॉरीशस।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!