
दुर्मिल सवैया छंद
प्रभु आन बसो मन मंदिर में
दिन रात जपें रचते रचना।
तुम मातु पिता धनदा विमला
सुन लो हम हैं तुम्हरे चरना॥
रहते तुम मंदिर में कब हो
अब आन बसो दिल में रहना।
तुमको रखता दिल में प्रभुजी
अब साँच सदा सुनना कहना॥
तुम शंकर हो तुम श्याम सखा
मन में विचरो दिन रात घना।
हम राम जपें दिन रात जपें
अब आन बसो मन में रहना॥
यशदा शुभदा तुम हो शुचिता
भर दो प्रभु जीवन में रसना।
तुम ज्ञान हमें इतना भर दो
हम पार करें भव का सपना॥
✍… डॉ॰ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’
*प्रयागराज, उत्तर प्रदेश*



