
कल तक थी मैं -परी पापा की
आज —तुम्हारी प्रिये हूँ मैं,
कल तक थी मैं परछाई खुद की
हूँ आज –तुम्हारी प्रतिछाया -प्रिये,
कल तक थी मैं घर का गहना
और,महकाया घर का कोना कोना,
कल तक खेला करती सखियों संग-मैं
अब नित रचूं श्रृंगार तुम्हारे लिए -प्रिये,
कल तक शर्म -हया था माँ का आँचल
अब –मैं हूँ , हर पल की लाज तुम्हारी,
कल तक था बचपन प्यार –मेरा
अब साथ तुम्हारा प्यार –प्रिये,
कल तक थी मैं —परी पापा की
आज —तुम्हारी प्रिये हूँ मैं,
कल तक थी अभिमान मैं घर की
आज हूँ –मैं स्वाभिमान तुम्हारी,
छोड़ कर बाबुल का घर अपना
चल पड़ी पिया संग घर उसके,
कल तक थी मैं –परी पापा की,
आज —तुम्हारी प्रिये हूँ मैं….||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब




