
हमनी के साथे साथ लेले चलीं जी,
रामजी दुअरा बहारब,
सुख दुख में हमनी के साथे रहब जी,
रामजी दुअरा बहारब,,,।
केकयी तेअगली चाहे घरवा छोड़वली
सोचली ना काठ अस करेजवा पोढ़वली
हमनी के हरनी ना कबो हारब जी, रामजी,,,।
रूखवो बिरिछिया तर छाइब जा पलानी
हिरदया में होता केकयी पर अब गलानी
घइला से पानी हमनी के ढारब जी, रामजी,,,।
नगर में अंजोर नइखे रउरा के भेज के
रहल ना जाला दुखवा छतिया अंगेज के
झोली परते संझिया के दीया बारब, रामजी,,,,।
अंखिया में लोर बाटे मनवा में दुख बा
सेवा में तत्पर रहे के नाथ जी भूख बा
हमनी के सांझ ना सबेरे हारब जी, रामजी,,,,।
विद्या शंकर विद्यार्थी रामगढ़, झारखंड
रचना मौलिक स्वरचित



