साहित्य

साक्षात्कार साहित्यकार का: डॉ ऋतु अग्रवाल

आपके साहित्यिक जीवन की शुरुआत कैसे हुई?
मैं बचपन में कविताएं लिखा करती थी। फिर विवाह पश्चात लेखन पर विराम लग गया। जब मेरा बेटा थोड़ा बड़ा हो गया और पारिवारिक ज़िम्मेदारियां थोड़ी कम होने लगी तो फेसबुक पर कहानी पढ़ते समय एक बार एक कहानी ऐसे ही लिखकर भेज दी उस कहानी को बहुत सारे व्यूज और लाइक्स मिले, बस वहीं से मेरी लेखन यात्रा पुन: प्रारंभ हो गई।

लेखन की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?
मैं मानती हूं कि मुझे लेखन की प्रेरणा बचपन में पढ़े गए बहुत सारे बाल साहित्य से मिली।

पहला लेखन अनुभव कैसा रहा?
पहला लेखन अनुभव बहुत सुंदर रहा। एक संस्मरण को कहानी के रूप में पिरोकर फेसबुक पर लिखा जिसे लोगों की बहुत सुंदर प्रतिक्रिया मिली।

किन साहित्यकारों या व्यक्तित्वों से आपने प्रेरणा ली?
साहित्यकारों में प्रेमचंद जी मेरी पसंदीदा लेखक रहे। विद्यालय जीवन में उनकी बहुत सारी किताबें पढ़ीं शायद कहीं न कहीं प्रेमचंद जी का साहित्य ही मेरे लेखन की नींव बना।

आपके लेखन का मूल विषय या केंद्र क्या है?
मेरे लेखन का मुख्य केंद्र समाज है।

आप किन सामाजिक या मानवीय मुद्दों को अपने लेखन में प्रमुखता देते हैं?
भ्रष्टाचार,गरीबी, ऊंच-नीच, धर्म जात-पात, बाल-विवाह, मानवीय शोषण, और सभी मानवीय भावनाएं मेरे लेखन में प्रमुख रूप से उद्दीप्त होती हैंं।
वर्तमान समय में साहित्य की भूमिका को आप कैसे देखते हैं?

क्या साहित्य समाज को बदल सकता है, या केवल उसका प्रतिबिंब भर है?
साहित्य न केवल समाज का प्रतिबिंब है अपितु साहित्य समाज को बदल भी सकता है क्योंकि साहित्य समाज पर अपना नकारात्मक या सकारात्मक प्रभाव अवश्य छोड़ता है।
आपकी रचनाओं में भाषा और शैली की विशिष्टता क्या है?

क्या आप परंपरागत भाषा प्रयोग के पक्षधर हैं या आधुनिक प्रयोगधर्मी शैली के?
मुझे लगता है परंपरागत भाषा प्रयोग लेखन के लिए आवश्यक है लेकिन आधुनिक प्रयोगधर्मी शैली को अपनी रचनाओं में समाहित किए बिना हम आज के समाज से अपने आप को नहीं जोड़ पाएंगे। पुरातन और आधुनिक दोनों शैलियों का समावेश अत्यंत आवश्यक है।

पाठक वर्ग को ध्यान में रखकर आप अपनी भाषा चुनते हैं या स्वाभाविक रूप से लिखते हैं?
मैं स्वाभाविक रूप से लिखना पसंद करती हूं लेकिन यह भी ध्यान रखती हूं कि मेरा लेखन साधारण, आमजन की भाषा में हो। क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग कम से कम हो।

आज के समय में साहित्य किन चुनौतियों का सामना कर रहा है?
आज के समय की सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि लोग अब पुस्तक और प्रिंट मीडिया कम पढ़ना चाहते हैं। सोशल मीडिया और इंटरनेट से लोग ज्यादा जुड़ रहे हैं। पुस्तकों में संकलित साहित्य अपना प्रभाव अधिक छोड़ता है ऐसा मेरा मानना है।

सोशल मीडिया और इंटरनेट युग में साहित्य की स्थिति को आप कैसे आंकते हैं?
सोशल मीडिया और इंटरनेट युग में यह तो अच्छी बात है कि अभी कागज़ का प्रयोग कम हो रहा है। लोगों को अधिक साहित्यिक सामग्री पढ़ने को मिल रही है लेकिन कहीं न कहीं इंटरनेट पर आने वाली साहित्यिक सामग्री में गुणवत्ता कुछ कम है। लोग शौकिया लिख रहे हैं और उसकी वजह से कुछ भी परोस कर स्वयं को साहित्यकार मानते हैं।

क्या आज के युवा लेखकों में रचनात्मकता और संवेदना पहले जैसी है?
बिल्कुल आज के युवा लेखकों में रचनात्मक और संवेदना पहले जैसी है। हां! इतना है कि परिस्थितियों बदली हैं। यदि हम आज के युवा साहित्यकारों की तुलना शरद चंद्र चट्टोपाध्याय, दुष्यंत कुमार, महादेवी वर्मा,या प्रेमचंद जी से करें तो वह उचित नहीं क्योंकि परिस्थितियों बदली हैं, विषय बदले हैं।

पुरस्कारों और सम्मान की राजनीति पर आपका क्या दृष्टिकोण है?
पुरस्कार और सम्मान का अपना महत्व है किंतु इनके पीछे होने वाली राजनीति के कारण कहीं न कहीं उचित और योग्य साहित्यकारों के साथ पक्षपात हो जाता है। उचित सम्मान उचित पात्रता नहीं पहुंच पाता।

क्या आज का लेखक अपने पाठक से जुड़ पा रहा है?
हां! लेखक अपने पाठक से जुड़ पा रहा है किंतु आज सोशल मीडिया के चलते लोग पठन-पाटनू सामग्री को कम महत्व देते हैं तो इस कारण मुझे लगता है कि कहीं न कहीं पाठकों की संख्या में कमी हुई है।

प्रकाशन जगत में नए लेखकों को क्या कठिनाइयाँ हैं?
प्रकाशन जगत में नए लेखकों के साथ कठिनाई यही आती है कि उन्हें उचित प्रकाशन संस्थानों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती। किस प्रकार पुस्तक का मूल्य है, कागज की गुणवत्ता, पृष्ठों की संख्या इत्यादि होनी चाहिए, इसकी जानकारी कम होती है।

क्या व्यावसायिकता ने साहित्य की आत्मा को प्रभावित किया है?
हां! व्यवसायिकता ने कुछ हद तक साहित्य की आत्मा को प्रभावित किया है। आज कुछ साहित्यकार केवल वही लिखना पसंद करते हैं जिसकी बाजार में मांग है।

आप आज के समाज में साहित्य की उपयोगिता को कैसे परिभाषित करते हैं?
साहित्य तो सदैव उपयोगी रहेगा। उत्तम साहित्य आज भी उचित विश्लेषण करके समाज को उसका आईना दिखाता है।

आपकी लेखन दिनचर्या कैसी है?
मेरी लेखन दिनचर्या में अक्सर ऐसा होता है जब कभी कोई विचार दिमाग में उमड़ता-घुमड़ता है तो मैं लिखने लगती हूं। ऐसा कुछ निश्चित नहीं कि किस समय लिखना है। विचारों का मस्तिष्क में प्रकट होना ही मेरे लेखन की दिनचर्या को निर्धारित करता है।

क्या आप किसी विशेष वातावरण या समय में लिखना पसंद करते हैं?
नहीं! ऐसा कुछ विशेष वातावरण या समय तो नहीं होता। बस विचार प्रकट होने चाहिए।

लेखन में आने वाले अवरोधों (writer’s block) से आप कैसे निकलते हैं?
लेखन में जब किसी प्रकार का अवरोध आता है तो कुछ समय के लिए मैं एकांत में, अपने आप से बात करती हूं और इस प्रकार मुझे लगता है कि मन शांत होने से सभी अवरोध समाप्त हो जाते हैं।

क्या आप अपने लेखन में आत्मानुभव का प्रयोग करते हैं?
हां! लेखक तो वही है जो अपने आत्माअनुभव का प्रयोग अपने लेखन में करे और मैं भी इससे अलग नहीं हूं।

आने वाले समय में आपके कौन-कौन से साहित्यिक प्रोजेक्ट या पुस्तकें प्रस्तावित हैं?
आने वाले समय में एक लघुकथा संकलन, विविध छंद आधारित संकलन और एक मुक्तक संकलन के प्रकाशन की योजना है।

नई पीढ़ी के लेखकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
नई पीढ़ी के लेखकों को यही कहना चाहूंगी कि लिखना प्रारंभ करें, लिखते रहें। लिखते-लिखते आप स्वयम् में परिवर्तन पाएंगे। यह एक सतत प्रक्रिया है, रुकना नहीं है।

क्या साहित्य आज भी समाज में बदलाव लाने की ताकत रखता है?
जी बिल्कुल, साहित्य में हमेशा ही समाज में बदलाव लाने की ताकत थी, है और रहेगी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!