साहित्य

साक्षात्कार साहित्यकार का:गोवर्धनसिंह फ़ौदार ‘सच्चिदानन्द’

साहित्यकार का नाम:

गोवर्धनसिंह फ़ौदार ‘सच्चिदानन्द’ ।

आपके साहित्यिक जीवन की शुरुआत कैसे हुई?

शिक्षण काल से मेरे साहित्यिक जीवन की शुरुआत हुई, यहाँ अपने अध्ययन काल को नहीं भूल सकता। पठन-पाठन से समय के साथ इसमें प्रौढ़ता आयी।

लेखन की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?

मुझे साँस्कृतिक धार्मिक कार्यक्रमों के संचालन केलिए प्रायः गाँव के मन्दिर या फिर पाठशाला आदि में बुलाया जाता था। इस तरह प्रस्तुतकर्ता की भूमिका में एक दो पंक्तियाँ, तुकबंदियाँ लिखते-लिखते आदत सी बन गयी। और फिर….

पहला लेखन अनुभव कैसा रहा?

नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के बाद। अपने आपको साहित्य से जुड़े रखने केलिए लिखना एक अच्छा माध्यम था। जैसे मैनें कहा कि मुझे संचालन करते समय प्रेरणा भी मिलती थी। इससे मेरी लेखनी में बहुत जल्द ही निखार आयी। हौसला बढ़ा.. ।

किन साहित्यकारों या व्यक्तित्वों से आपने प्रेरणा ली?

मुझे मुंशी प्रेमचंद जी की कहानियाँ बहुत अच्छी लगती थी। उनकी कहानियों पर आधारित कई नाटकों में भी भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ। इनकी रचनाएँ सामाजिक समस्याओं को दर्शाती है। आज भी इनकी कहानियाँ वर्तमान समय केलिए लिखी गयी हो लगती है।

आपके लेखन का मूल विषय या केंद्र क्या है?

समाज की परिस्थिति।

आप किन सामाजिक या मानवीय मुद्दों को अपने लेखन में प्रमुखता देते हैं?

परिवार से सम्बन्धित जितनी समस्याएँ हो।बच्चे हो, माता-पिता, बुजुर्ग हो, पाठशाला हो, रीति रिवाज हो, जो भी हो समाज के सामने रखना।

वर्तमान समय में साहित्य की भूमिका को आप कैसे देखते हैं?

देखिए आज हमें जो भी अच्छा लगता लिखते हैं। कभी मान सम्मान केलिए, तो कभी यूहीं तुकबन्दी कर लेते हैं। और फिर आज हम तुलसीदास जी, कबीरदास जी, मलिक मुहम्मद जायसी जी, महादेवी जी आदि ऐसे महान कवि कवियित्री तो बन नहीं सकते। हाँ…. यहाँ गौर करने वाली जरुर है। यह भी नहीं भूलना है कि एकमात्र साहित्य हीं है जिसके सहारे हमारा समाज चलता है। सो प्रयास यही करें कि साहित्य को किसी भी तरह से हानि न हो।

क्या साहित्य समाज को बदल सकता है, या केवल उसका प्रतिबिंब भर है?

बिल्कुल बदल सकता है।साहित्य केवल लिखित ही नहीं अपितु मौखिक भी है।रेडियो टेलिविज़न सब इसी के अन्तर्गत आते हैं। पर कुछ नया करना होगा। नये विचार लाने होंगे।जब तक हम समसामयिक रचनाओं के पीछे दौड़ेंगे तो शायद थोड़ा मुश्किल होगा। समय समय पर कुछ नया करना चाहिए ।सुझावों की कमी है।

आपकी रचनाओं में भाषा और शैली की विशिष्टता क्या है?

मुझे सरलता बहुत पसन्द है।बल्कि यूँ कहें कि मैं सरल शब्द चुनकर लाता हूँ। साधारण से साधारण पाठक तक पहुँचना मेरा धर्म है। कठिनता से पाठक दूर भागते हैं। पाठ्यक्रम में सम्मिलित पुस्तक हो तो झेल लेते हैं। अन्यथा सरलता हर कोई पसन्द करता है।

क्या आप परंपरागत भाषा प्रयोग के पक्षधर हैं या आधुनिक प्रयोगधर्मी शैली के?

मेरा हमेशा यह प्रयत्न रहता है कि मैं अपनी भाषा से निकट रहूँ। बिरले हीं मेरी शैली किसी और भाषा से प्ररित होती है।

पाठक वर्ग को ध्यान में रखकर आप अपनी भाषा चुनते हैं या स्वाभाविक रूप से लिखते हैं?

पुनः यह बात दोहरा रहा रहा हूँ, मेरी लेखनी सदैव सरलता की ओर बढ़ती है। मुझे छंद लिखना अच्छा लगता है पर, प्रायः सरल से सरल शब्द का प्रयोग मेरी प्रधानता रहती है।

आज के समय में साहित्य किन चुनौतियों का सामना कर रहा है?

हम आजकल नयी खोज की ओर नहीं बढ़ते। कुछ विशेष भी नहीं लिखते। पुराने कवि देखिए किसी ने भक्ति लिखी तो किसी ने समाज लिखा। किसी ने प्यार लिखा तो किसी ने शृंगार लिखा। आज एक ही कवि सब लिखता है। कम ही ऐसे कवि हैं आज, जो छंद लिखते हैं।रस या अलंकार आदि को महत्व देते हैं। इस प्रकार आज साहित्य आगे की भाँति आगे नहीं बढ़ता।

सोशल मीडिया और इंटरनेट युग में साहित्य की स्थिति को आप कैसे आंकते हैं?

यह एक बहुत अच्छा माध्यम है। पर सोशल मीडिया पर हमें वैसे पाठक नहीं मिलते। अच्ची रचनाओं का स्थान यहाँ नहीं है। लोग लिखना यहीं से आरम्भ करते हैं पर समय के साथ सोशल मीडिया केलिए लिखना बन्द कर देते हैं।

क्या आज के युवा लेखकों में रचनात्मकता और संवेदना पहले जैसी है?

मैं तो कहूँगा नहीं। उनकी अपनी सोच है। उनकी भाषा और शैली भी अलग है। हाँ कभी कभार एक दो संवेदना वाले मिलते है।

पुरस्कारों और सम्मान की राजनीति पर आपका क्या दृष्टिकोण है?

पुरस्कार एक प्रकार से हौसला है। पुरस्कार को ध्येय बनाकर लिखना गलत है। आजकल तो सम्मान मिलना बहुत आसान है। आपकी रचना अच्छी हो तो सम्मान घर चलकर आयेगा।

क्या आज का लेखक अपने पाठक से जुड़ पा रहा है?

पाठक आज कम मिलते हैं। पाठ्यक्रम से सम्बन्धित पुस्तकों से हटकर कुछ और पढ़ ले ऐसे पाठक बिरले ही मिलते हैं।

प्रकाशन जगत में नए लेखकों को क्या कठिनाइयाँ हैं?

मैं माॅरीशस देश हूँ। मेरे देश में इतनी सुविधाएँ नहीं है।भारत में प्रकाशन की सुविधाएँ तो बहुत है।मुझे ही कई प्रेस द्वारा, आजकल पुस्तकें सस्ते दामों में प्रकाशित करवाने की सूचना देते रहते हैं।

क्या व्यावसायिकता ने साहित्य की आत्मा को प्रभावित किया है?

हाँ भी नहीं भी।

आप आज के समाज में साहित्य की उपयोगिता को कैसे परिभाषित करते हैं?

यह सही है कि साहित्य समाज का दर्पण है। समाज जब तक रहेगा साहित्य रहेगा। चाहे मानने वाले कम हो या ज्यादा।

आपकी लेखन दिनचर्या कैसी है?

मेरा कोई विशेष समय नहीं है। हाँ पटलों से जुड़े रहने से प्रतिदिन विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित अलग अलग समय में कार्यक्रम होते रहते हैं।

क्या आप किसी विशेष वातावरण या समय में लिखना पसंद करते हैं?

इतनी सुविधा है मुझे। मैं एकान्त शान्त वातावरण में लिखना पसन्द करता हूँ। पर, लिखने वालों का क्या चलते फिरते भी लिख लेते हैं।

लेखन में आने वाले अवरोधों (writer’s block) से आप कैसे निकलते हैं?

समस्या स्वाभाविक है। ऐसा मानकर भी चलना चाहिए ।फिर कोई भी ऐसी समस्या नहीं जहाँ से साहित्यकार न निकल पाये।बल्कि समस्या एक और विषय के रूप में लिखने केलिए मिल जाता है।

क्या आप अपने लेखन में आत्मानुभव का प्रयोग करते हैं?

बिल्कुल, बल्कि मैं आत्मानुभव को हीं अपनी रचनाओं में स्थान देता हूँ ।दिल की पुकार को कभी नहीं त्यागता।मेरी बाल कविताएँ, बुजुर्गों पर रचनाएँ, या मेरी लघुकथाएँ आदि इन्हीं से प्रेरित होती हैं।

आने वाले समय में आपके कौन-कौन से साहित्यिक प्रोजेक्ट या पुस्तकें प्रस्तावित हैं?

आभा साहित्य संघ जबलपुर मप्र के संस्थापक आदरणीय डॉ सलपनाथ यादव ‘प्रेम’ जी ने एक नयी विधा”पूर्णिका” को जन्म दिया है।निकट भविष्य में एक पूर्णिका संग्रह प्रकाशित होना तय है।

नई पीढ़ी के लेखकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?

अपने लिए नहीं औरों केलिए लिखें। समाज केलिए, साहित्य को समृद्ध करने केलिए लिखें।

क्या साहित्य आज भी समाज में बदलाव लाने की ताकत रखता है?

बिल्कुल ला सकता है। अच्छी चीज़ हो तो उसका प्रभाव समाज पर अवश्य पड़ेगा। प्रायः यह भी देखा जाता है कि समस्याओं का समाधान साहित्य से ही तो होता है।

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