साहित्य

संदूकची

दिवाकर पाठक

संदूकची  रजनी प्रभा जी की एक अनुपम काव्य कृति है। जिसमें रचयिता ने जीवन और जगत के विभिन्न पहलुओं जैसे :आधुनिक दंश,गांव शहर हो रहा,क्षति,अंतर्मन की वेदना,प्रणय निवेदन,साथी साथ निभाना,देवी-दर्शन,स्त्रीत्व,इंतजार,लौट के आजा परदेशी,मेरा बचपन,आकांक्षा,ममत्व,पुरुष,शून्य,प्रतिरोध,गुरु दक्षिणा,प्राकृतिक स्पंदन,मन,रेगिस्तान,ग्लोबलाइजेशन,पिता, जगत व्यवहार,अभिनंदन दिवस,मेरा टूटना आदि अनछुए पहलुओं को उन्होंने भरसक एक सूत्र में पिरोने की भरपूर कोशिश की है। यदि हम बात करें तो रजनी जी वास्तव में साहित्य जगत की एक अनोखी दास्तान हैं। उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा में एक से बढ़कर एक पुरस्कारों से पल्लवित और सुशोभित हुई हैं। इसमें कहीं दो राय नहीं की उनका यह काव्य संकलन एक अनूठा संग्रह है,जो पाठकों के बीच अपनी अमित छाप छोड़ेगा और साहित्य के प्रति लोगों का उत्साह वर्धन करने में सफलता पाएगा।

अब हम इसके मूल अर्थ की तस्वीर को आप सबों के बीच प्रस्तुत करते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि संदूकची का साधारण व मूल अर्थ है तिजोरी। तो यहां यह स्पष्ट है कि जिस प्रकार हम अपनी तिजोरी में महत्वपूर्ण चीजों को रखते हैं,जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। उसी प्रकार संदूकची को भी कवयित्री ने गढ़ा है,साहित्य की समृद्धि के लिए। जिस प्रकार तिजोरी हमारे जीवन के उपयोग की चीजों को समेट कर रखता है। ठीक उसी प्रकार इस अनुपम काव्य संग्रह में भी हमारे जीवन को हमेशा प्रज्वलित रखने का आदर्श व अनोखा आख्यान प्रस्तुत है। हम सभी यह जानते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है और इसी स्वच्छ दर्पण में हमारी छवि प्रतिबिंबित होती है। अर्थात् हमारी वास्तविक प्रतिबिंब को हमें दर्शाता है। जिससे हमारी दुविधा का अंत होता है। इस प्रकार बड़ी विशुद्धता के साथ यह हमारा मार्गदर्शन करता है,जिससे हमारे चरित्र का चित्रांकन स्वच्छता की छवि को प्राप्त कर सके। साहित्य के साथ भी बिल्कुल वही नियम लागू होता है। यदि समाज से बुराइयों को हटाना है,तो हमें स्वच्छ साहित्य के सरोवर में स्नान करना होगा। तभी हमारा समाज सच्चे अर्थों में सुसंस्कृत हो सकेगा। साथ ही साहित्य की सुषमा भी अपनी अनुपम आभा बिखेरने में सफल हो सकेगी। वरना! संक्रमण के इस काल में आक्रमण जारी है। ऐसे में स्वच्छ साहित्य ही हमारा सच्चा मार्गदर्शन कर सकता है।

चकाचौंध की इस दुनिया में रिश्ते रेगिस्तान हो रहे हैं। अब रिश्तों में नरमी की जगह रूखापन ने जगह ले लिया है। सच कहें तो रिश्तों की झूठी डोर में बंधे हैं हम। अब वो मिठास वाली बात नहीं रही। कारण है कि हमने वास्तविकता की वकालत से दूर होकर,काल्पनिकता की ओर करवट ले ली। आज स्थिति यह है कि रिश्ते बड़ी तेजी से तार-तार होते नजर आ रहे हैं। समाज सिकुड़ता चला जा रहा है। लोग केवल अपनी उन्नति की ऊंची मकान बनाना चाहते हैं,जिससे कि सामने वाला उनके तलवे चाटने को मजबूर हो सके। मतलब ये है कि दूसरों की कमजोरी का फायदा उठाकर उसे आसानी से मजबूर किया जा सके और अपनी स्वार्थलिप्सा पूरी की जा सके। ये है आज के वर्तमान समाज की कड़वी सच्चाई। लोग आपको ऋणात्मक बनाकर,स्वयं धनात्मक बनकर आपके ऊपर धाक जमाने के लिए आतुर हैं। ऐसे में इनसे बचने की तरकीब आपको ढूंढनी होगी। तभी जीवन बच सकेगा। वरना! संक्रमण की सुई इतनी घातक है कि हमें पल-पल पीड़ा देती रहेगी। इस प्रकार कह सकते हैं कि समाज प्रदूषण का पवार हाउस बनता दिख रहा है। ऐसे में इसे स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी हम सभी की है। नहीं तो प्रदूषण के विषाणु तो इसे विषाक्त करने पर तुले ही हैं। ऐसे में हमारी बुद्धिमता ही इन्हें पराजित कर सकती है। तभी समाज की स्वच्छता बरकरार रह सकेगी। इसलिए स्वच्छता का एक दीप हर रोज जलाएं। जिसकी लौ में बुरी शक्तियां स्वयं जलकर स्वाहा हो जाएंगी।

सारांश है कि ऐसे संक्रमण काल में सच्चा साहित्य ही हमारा सही मार्गदर्शन कर सकता है। क्योंकि ज्यादातर लोग तो झूठ के साए में अपना मुंह छुपाए बैठे हैं। वह हर वक्त मौके की तलाश में हैं कि कब आपको पराजय की खाई में धकेला जा सके। इसलिए इनसे बचने का एक ही सटीक उपाय है साहित्य का अध्ययन। जब तक हम इसका अध्ययन नहीं करेंगे,तब तक हम इसके दुष्प्रभाव से नहीं बच सकते। जिस प्रकार बाबा तुलसी कृत रामचरित मानस ने संपूर्ण समाज को सही दिशा निर्देश देने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उसी प्रकार साहित्य सागर ही हमें भवसागर पार लगा सकता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि साहित्य हमें हर पल बुरी शक्तियों से बचाने का कार्य करता है,जो कोई और हमें इसकी गारंटी नहीं दे सकता। इसलिए साहित्य यात्रा की इस कड़ी में हम अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें। तभी जीवन ज्योति का अमर प्रताप पुंज प्रवाहित होता रहेगा। इसी विश्वास की कड़ी में आदरणीया कवयित्री की यह कृति,सफलता के नए-नए सोपान गढ़ने में सफल साबित होगी। साथ ही साहित्य के प्रति पाठकों में रुचि पैदा कर,एक अप्रतिम यात्रा की नींव रखने में अपनी नई मिसाल पेश कर सकेगी।

इसी आशा और विश्वास को लेकर हम आगे बढ़ें। हम अपने चरित्र को चिंगारी से जलने से बचाएं। यही हमारे जीवन के सफलता की सर्वश्रेष्ठ कुंजी होगी।

दिवाकर पाठक,हजारीबाग( कंडाबेर), झारखंड

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